पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३०

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राष्ट्रभाषा पर विचार १२० में प्रयुक्त 'जनना' 'जामन' 'खंश' 'भूक' आदि रूपों को देखिए और अच्छी तरह जान लीजिए कि अब आपके बच्चे आपकी भाषा नहीं समझ सकते। अब तो आप की उदार और सच्ची सरकार उन्हें उन परदेशियों की जबान सिखाने पर उतारू है जो विवशता के कारण यहाँ पर बस गये हैं पर गुलामी करते हैं किसी कल्पित अरव और फारस की और इसी से बोलते हैं राष्ट्र' को 'राष्टर'! और इसी का तो यह नतीजा है कि बच्चों की इस चौथी पोथी में 'कपूर' को 'काफूर' और अफीम को 'श्रफ्यून कर दिया गया है ? मानों स्वयं इनका इस देश से कोई नाता नहीं। पर दुनिया जानती है कि काफूर' किस 'कर्पूर' का अरवी रूप है और 'अफ्यून' भी 'अहिफेन' का । 'अस्पताल भी 'शफाखाना हो गया है। अस्पताल को समझता कौन है ? किंतु पाठक कहीं यह न समझ लें कि इस पोथी की जबान सचमुच उर्दू है। नहीं । उर्दू किसी ऐसी पोथी में उतर ही नहीं सकती। इसलिए इस पोथी की जबान उर्दू नहीं, उर्दू की बाँदी है जिसे इसके समझदार लेखकों ने हिंदुस्तानी के प्रिय नाम से याद किया है और जगह जगह पर अपनी हिंदुस्तानी घिस-घिस का पता भी दे दिया है और इस पोथी' में न तो लिंग-भेद का झगड़ा है और न किसी व्याकरण या शुद्ध रूप की पाबंदी। कहीं 'तरफ' को हम स्त्री के रूप में पाते हैं तो कहीं पुरुष के रूप में। उसके लिंग का पता नहीं। कहीं आप को 'फटकरी' और 'दरिया' दिखाई देंगे तो कहीं 'फिटकरी' और 'दरया'। एक ही शब्द 'बलगम' कहीं 'मलगम' दिखाई देता है तो कहीं और भी बढ़कर बढ़िया 'गलगम'। 'दिक' का यह गलगमी पाठ कितना हिंदुस्तानी है, इसे आप ही समझे।