पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१३

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राष्ट्रभाषा ३ 93 करोति तस्यादेशात् श्रीगुजरातमध्ये सो० श्रीराजनगरे सोबेलाहिव नु बाप श्रीमहबतषान दीवानी श्री श्री हाजीमहिमद सफिछि। हवि पासषत पालसि श्री भायतहवालि भीर्या श्री श्री जहान अलावदीन हवडा श्री मीरमाजूला कजाइकानी श्री महिमद सरागदीन वाकेनिकसे मीयों श्री श्रहमेद वेग दीवानी श्री किशुरदास श्री कोटवाली चोतरि मीर काशमवेग वेसे छे। एवमादीपञ्च कुलप्रतिपती श्रीषभायतवास्तव्य श्री श्रोसवाल- ज्ञातीय वृद्ध शाषायां साषीमवतूनी । धनीअणि बाई फूला ता तथा सा भानशंग ठाकरशीपारत्वात् योग्य लषित श्रोत्सवालज्ञातीय लघूशा- पायां बाई मणिकदेहस्वाक्षराणि दत्ता...' (लेखपद्धतिः, गा० ओ० सी०, संख्या १६, पृष्ट ७७ ) 'श्री' के प्रचुर प्रयोग के साथ ही यह भी टाँक लेना चाहिए कि लेख संस्कृत के आधार पर ही चल रहा है। इस प्रकार की चलित संस्कृत से स्पष्ट हो जाता है कि आलमगीर औरंगजेब ने आमों के नाम क्यों शुद्ध संस्कृत में सुधारस' और 'रचना-विलास' रखे। औरंगजेब के समय में संस्कृत किस प्रकार अपने टूटे-फूटे रूप में व्यवहार में चलती रही इसकी एक झलक मिल गई। अब मुहम्मदशाह रँगीले के शासन की भी एक झाँकी लीजिए- श्रीरामः। Vश्री महम्मदसाह १-सिद्धिरस्तु ॥ परमभट्टारकेत्यादि-राजावलीपूर्वक (-) गत्त- लक्ष्मणसेनदेवीय (-) विंशत्यधिक (-) २-~षटशते लिख्यमाने यत्राङ्केनापि ६२० ल-सं। पुन परम- भट्टारकाश्वपति-गजपति नरप-