पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२९

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हिंदुस्तानी की चौथी पोथी ११६ यह रीडरें कैरिकुलम टेक्स्ट बुक कमेटी युक्तप्रांत के अनुसार तैयार की गयी हैं । तमाम विषयों पर जो कैरिकुलम में अवस्थित हैं बड़ी सुंदरता से प्रकाश डाला गया है। भाषा का ऐसा प्रयोग , किया गया जो न केवल युक्तप्रांत बल्कि तमाम भारतवर्ष के शिक्षित वरानों में बोली और समझी जाती है । जिसको वास्तव में भारतीय भाषण कहा जा सकता है। (वही भूमिका) 'कैरीकुलम टेक्स्टबुक कमेटी' तो कुछ रही ही होगी। उसके घरों का हाल हम क्या जानें। किंतु 'भारतवर्ष और भारतीय भाषा की पहचान कुछ हमें भी है। इसलिए हम युक्तप्रांत की सरकार से यह जान लेने की धृष्टता करते हैं कि किन भारतीय शिक्षित घरों में 'धृतराष्ट्र' को 'धृतराष्टर' 'द्रुपद' को 'द्रपद' युधिष्टिर' को 'युधिष्टर' और 'वाप' को 'अब्बा' कहते हैं। क्या किसी भी सच्चे भारतीय शिक्षित हृदय से ऐसे अपभ्रष्ट शब्दों का प्रयुक्त होना संभव है ? हैरान होने की बात नहीं; कुछ समझ से काम लेने का समय है। सुनिये तो किसी गाँव का मुखिया अपने गाँव के चमार को किस प्रकार याद मियाँ पलटू ! बस खैर इसी में है कि नुकसान भर दो वरना फिर तुम मुझे जानते ही हो (वही, पृ०६०) फिर वही मुखिया साहब अपने साथियों से फरमाते हैं --- मियाँ हमारे गाँव के चमारों में यह उबसे ज्यादा सियाना है। (पृ०६१) अब्बा', 'मियाँ' और 'धृतराष्टर' से शिष्ट घरों का पता चल गया। यदि फिर भी कुछ संदेह शेष रह गया तो उस पोथी