पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२८

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राष्ट्रभाषा पर विचार स्तानी अरबी' इसलिए कि अरव लोग इस अरबी को नहीं समझते। हिंदुस्तान एक खेतिहर देश कहा जाता है। इसलिए किसानों के बच्चों को बताया गया है- सींचाई के लिहाज से जमीनें तीन प्रकार की होती है। चाही, बारानी, नहरी । चाही जमीन तो वह है जिसको कुओं के पानी से सींचा जाता है। बारानी वह है जिसमें खेती बारिश के पानी से होती है। नहरी जमीन उसे कहते हैं जिसमें नहरों से प्रापाशी होती है। (पृ०३१) नहर के पाठ में 'चाही' और 'बारानी की जरूरत क्यों पड़ी, इसके कहने की आवश्यकता नहीं। आवश्यकता तो यह जान लेने की है कि अब आपके बच्चों को वर्षा या बारिश से संतोष न होगा। उन्हें विवश हो इस 'बारानी' का जाप करना पड़ेगा। इसी तरह कुएँ की जगह 'चाह' का प्रचार किया जायगा और आप चाहें या न चाहें पर आपके लाडले लड़कों को 'चाही' सीखना पड़ेगा। खैर, यहाँ तक तो कोई बात नहीं। आपके लड़के सहज में ही मौलवी साहब बन सकते हैं। पर कृपया यह वो कहें कि आपके देश में ताल-पोखरों से भी कुछ सींचने-साँचने का काम होता है अथवा नहीं ? यदि हाँ, तो यह 'चाही' और यह 'बारानी' उसके किस काम के हैं। हमारी दृष्टि में तो इस 'चाही' और इस 'बारानी ने स्पष्ट सिद्ध कर दिया है कि हमारे परदेशी अथवा उनके अंधभक्त देशी विधाताओं की दृष्टि किधर है और कहाँ से उन्हें जीवन की शुभ्र प्रेरणा मिल रही है। हाँ तो हिंदुस्तानी की चौथी पोथी के लेखकों का दावा है-