पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२७

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हिंदुस्तानी की चौथी पोथी कर इंसाफ़ करें कि 'हिंदुस्तानी की चौथी पोथी' में अहिंदियत्त कहाँ है ? किताब की जगह 'पोथी' तक लिख दिया, फिर भी आप उसे पूजा की दृष्टि से नहीं देखते ! ठीक है । पर जरा हमें कुछ दूर तक देखने की आदत पड़ गई है और स्वभावतः हम भीतरी बातों पर विशेष ध्यान देते हैं। राग को रंग से अधिक महत्त्व देते हैं। याद रहे हिंदुस्तानी के पुजारी हिंदुस्तानी पर किसी दूसरी भाषा का अनुशासन नहीं चाहते और उन्हीं विदेशी शब्दों को अपनाते हैं जिन्हें जनता ने अपना लिया हो। अब तनिक ध्यान से देखिए तो सही कि 'जरासीम' किस भाषा का शब्द है और किस प्रकार बच्चों की बोली में आ गया है। देखिए 'बीमारी के जरासीम आदमियों में पहुँच जाते हैं-(पृ० ३६)' और आपके बच्चे चट 'जरासीम' का अर्थ समझ जाते हैं। पर यह जरासीम' है क्या बला ? उत्तर के लिए व्यन न हो। देखें- बीमारी के हजारों कीड़े जिनको जरासीम कहते हैं मक्खी की टाँगों से चिपट जाते हैं । (पृ० १३६) अंगरेजी आपकी राजभाषा है। 'जरासीम अर्स' का अरबी रूप है। अरवों को इस बीमारी का पता नहीं, पर जरासीम' उनको इसका मालिक बना देता है। पर क्या स्वयं अरब इसका अर्थ जानते हैं १ नहीं। यह तो हिंदुस्तानी बच्चों के लिए हिंदु- स्तानी ईजाद है। हिंदुस्तान की जबान अरबी नहीं तो और क्या हो सकती है ? हिंद महासागर से अरब का लगाव है, न कि इंगलैंड का । यही कारण है कि अंगरेजी की जगह हिंदुस्तानी अरवी के लिए जोर लगाया जा रहा है। हिंदु-