पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२३

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हिंदी-दुिस्तानी का उदय था उर्दू के बजाय हिंदी हिंदुस्तानी का लफ़्ज़ क्यों इस्तेमाल करते हैं । उन्होंने कहा कि यह सवाल सब से पहले १६१८ ई० में उठाया गया था और इंदौर की सदारत के वक्त उन्होंने मिस्टर पुरुपोचमदास टंडन से जो दरअल संमेलन के बानी-मुबानी है, इसकी तशरीह भी कर दी थी। (उर्दू, अप्रैल सन् १९३७ ई०, पृ० ४२६ ) अस्तु, हिंदी-साहित्य संमेलन के इंदौर के अधिवेशन में जो हिंदी-हिंदुस्तानी की बात हुई उसी का यह नतीजा है कि नागपुर. में उसकी धूम मची है और मद्रास में तो उसी का बोल बाला हो गया है, और हिंदी साहित्य-संमेलन के प्रस्तावों में भी ठाट से उसका प्रयोग हो रहा है। हाँ, तो इंदौर में मी महात्मा गांधी की व्याख्या काम कर गई। वहाँ राष्ट्रभाषा की जो परिभाषा की गई वह वस्तुतः हिंदु- स्तानी कही जाने वाली चीज की परिभाषा थी, कुछ राष्ट्रभाषा अथवा सरल बात व्यवहार की बोल चाल की चलित हिंदी की नहीं। क्योंकि उसमें साफ कहा गया कि जो नागरी या उर्दू लिपि में लिखी जाती हो। (संमेलन की शिमला में स्वीकृत नियमावली, पृ०२) हिंदी-साहित्य संमेलन की नियमावली किस प्रकार हिंदी- हिंदुस्तानी का पोषण कर रही है, उसकी चर्चा हम फिर करेंगे। यहाँ केवल इतना और जान लीजिए कि संमेलन की इस राष्ट्रभाषा की परिभाषा से महात्मा गांधी का गहरा लगाव है। महात्मा गांधी की हिंदी हिंदुस्तानी व्याख्या यह है- जिस भाषा को आम तौर पर उत्तर भारत के हिंदू और मुसलमान