पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१२२

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११२ राष्ट्रभाषा पर विचार , गए हैं कि राष्ट्रभाषा हिंदी-हिंदुस्तानी में ही हमारा सारा व्यवहार चलेगा । और- जन्न हिंदी-हिंदुस्तानी में हमारा अंतप्रीतीय व्यवहार चलेगा तव में सब प्रांतों के लिए सुलभ राष्ट्रभाषा का सर्वसाधारण स्वरूप भी गड़ना होगा। अंत में आपका अनुरोध है कि- अगर इस संगठन को सफल बनाना है, तो श्राप कृपया अपनी हिंदी या हिंदुस्तानी हमारे लिये जिस तरह हो श्रासान कीजिये । हम संस्कृत का पक्ष नहीं लेते बल्कि हिंदी-हिंदुस्तानी की विफलता टालना चाहते हैं । (हंस, मई सन्१९३६ ई०, पृ० ६६-७ ) स्वागताध्यक्ष ही नहीं परिषद् के सभापति महात्मा गांधी जी भी इसी हिंदी-हिंदुस्तानी की गोहार लगाते हैं। आप कहते हैं--- मुंशीजी और काका साहब ने हमारा मार्ग एक हद तक साफ कर रखा है। ध्यापक साहित्य का प्रचार व्यापक भाषा में ही हो सकता है। ऐसी भाषा अन्य भाषा की अपेक्षा हिंदी-हिंदुस्तानी ही है। हिंदी- को हिंदुस्तानी कहने का मतलब यह है कि उस भाषा में फारसी मुहा- वरे के शब्दों का त्याग न किया जावे। (महात्मा गांधी का अभिभाषण, वही, पृ०७२) प्रश्न उठता है कि यह हिंदुस्तानी कहाँ से आ गई कि परिषद् के स्वागताध्यक्ष और सभापति दोनों ही इसी पर लटु हो रहे हैं, तो इसके संबंध में उर्दू के विधाता मौलवी अब्दुल हक का कहना २६ मार्च को संमेलन के (मद्रास के) दूसरे दिन के इजलास में महात्मा गांधी ने इसकी तशरोह की कि वह हिंदी या हिंदुस्तानी