पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/११९

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हिंदी-हिंदुस्तानी का उदय १०६ तकलीफ़ दी जायगी, इस तरह का निश्चय हुआ । इस परिषद् के मंत्री कन्हैयालाल मुंशी और काका साहब कालेलकर चुने गए । परिषद् का कार्यालय वर्धा में रखना तय हुश्रा।" (हंस, मई सन् १९३६ ई०, पृ० ६१५) प्रसंगवश यहाँ इतना और जान लीजिए कि महात्मा गांधी जी इंदौर के अधिवेशन के सभापति थे और राजेन्द्रप्रसादजी इस नागपुर अधिवेशन के। साथ ही यह भी ध्यान रहे कि इसी हिंदी-साहित्य संमेलन ने जिसके पास आज भारतीय साहित्य परिषद् का कोई लेखा नहीं, उसी नागपुर के खुले अधिवेशन में प्रस्ताव किया था- 'अपने पिछले ( इंदौर के ) अधिवेशन में संमेलन ने जो समिति देश की भाषाओं के साहित्यिकों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए बनाई थी, उसके संयोजक कन्हैयालाल मुंशी की रिपोर्ट को सुनकर यह संमेलन समिति के कार्य पर बधाई देता है और उसके उद्योग द्वारा स्थापित 'हंस' मासिक के नवीन क्रम तथा भारतीय साहित्य परिषद् की स्थापना का स्वागत करता है। यह संमेलन भारतीय साहित्य परिषद् के मंतव्यानुसार इन नीचे लिखे हुए सात व्यक्तियों को परिषद् की बनाई हुई, संस्थापित समिति के लिये नामजद करता है- १ पुरुषोत्तमदासजो टंडन, २ प्रेमचन्द्रजी, ३ पं० रामनरेशजी- त्रिपाठी, ४ देव शर्मा 'अभय, ५ ब्रिजलालजी बियानी, ६ पंडित माखनलालजी चतुर्वेदी और ७५० जयचन्द्रजी विद्यालंकार । साथ ही उपयुक्त व्यक्तियों के अतिरिक्त बाबू राजेंद्रप्रसादजी, कन्हैयालाल मुंशी, काका कालेलकर और हरिहर शर्मा की एक समिति नियुक्त करता है, जिसका कर्तव्य होगा कि भारतीय साहित्य परिषद् के कार्य के संबंध में संमेलन की ओर से ध्यान और सहयोग देता रहे,