पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/११७

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हिंदी-हिंदुस्तानी का उदय १०७ नहीं किया जायगा और उसके बदले में हिंदी यानी हिंदुस्तानी भाषा का उपयोग किया जायगा और उसके बदले में हिंदुस्तानी ही इस्तेमाल की जायगी। लेकिन जो मेंबर हिंदी यानी हिंदुस्तानी में अपना मतलब पूरी तरह से नहीं समझा सकेगा वह अंग्रेजी भाषा का उपयोग कर सकेगा। यह कहना जरूरी नहीं है कि जो मेंबर हिंदी हिंदुस्तानी न जानने के कारण अपनी प्रांतीय भाषा में बोलना चाहे उसे कोई प्रतिबंध नहीं है। और संमेलन की राय है कि ऐसी हालत में आवश्यकता होने पर अनुवादक रखे जायँ । यदि किसी को अंग्रेजी में समझाने की आवश्य- कता पैदा हो तो प्रमुख की संमति से कोई भी सदस्य अंग्रेजी का उपयोग कर सकेगा। अस्तु, कहने की आवश्यकता नहीं कि हमारा हिंदी अभिमानी हिंदी साहित्य-संमेलन संस्कृताभासी हिंदी के पक्षपाती मद्रास प्रांत में पहुँचकर अपने खुले अधिवेशन में 'हिंदी' की उपेक्षा कर उसी हिंदी-हिंदुस्तानी' को अपनाता है जिसके निराकरण के लिये आज उसके प्राण श्रद्धेय टंडन जी तत्पर हैं। और अपनाता ही क्यों ? वह तो कांग्रेस से लेकर केंद्रीय व्यवस्थापक सभा' तक उसका प्रसार चाहता है। फिर आज हिंदी साहित्य- संमेलन को 'हिंदी-हिंदुस्तानी' से परहेज क्यों ? हमें तो आश्चर्य यह देखकर होता है कि हिंदी के लिये प्राण निछावर करने वाले हमारे टंडन जी भी उस अधिवेशन में इसी 'हिंदी-हिंदुस्तानी' का प्रयोग कर जाते हैं। कहते हैं- हमारी हिदी हिंदुस्तानी में सांप्रदायिकता नहीं मुसलमानों ने हिंदी साहित्य में बहुत काम किया है। (श्रीटंडन जी का पृ०३)