पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/११२

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राष्ट्रभाषा पर विचार १०२ यह हिंदी ज़बान ममालिक मुचहदा श्रवध और रुहेलखंड (युक्तप्रांत ) और सूबा बिहार और सूत्रा सी० पी० और हिंदुओं की अकसर देशी रियासतों में मुख्वज (प्रचलित) है। गोया बंगाली और बरमी और गुजराती और मरहठी बगैरा हिंदुस्तानी ज़बानों से ज्यादा रिवान हिंदी यानी नागरी ज़बान का है। करोड़ों हिंदू औरत मर्द अब भी यही जवान पढ़ते हैं और यही जमान लिखते हैं, यहाँ तक कि तकरीबन एक करोड़ मुसलमान भी जो सूबा यू० पी० और सूत्रा सी० पी० और सूबा बिहार के देहात में रहते हैं या हिंदुओं की रिया- सतों में बतौर रिाया के आबाद हैं और उनको हिंदू-रियासतों के खास हुक्म के सबब से हिंदी जबान लाजमी तौर से हासिल करनी पड़ती है, हिंदी के सिवा और कोई ज़बान नहीं जानते । (कुरान मजीद की भूमिका हिंदी अनुवाद, सन् १९२६ ई.) ख्वाजा हसन निजामी जैसे मजहबी नेता ने स्पष्ट शब्दों में मान लिया है कि उत्तर भारत अथवा ठेठ हिंदुस्तान की बोल-चाल और बात-चवहार की भाषा 'हिंदी वा नागरी ही है। परंतु इसी को एक दूसरे मुसलिम विद्वान् अल्लामा सैयद सुलैमान नवी साहब भी इस रूप में कहते हैं-- - हमारे बुजुर्गों ने इस जबान को दो किस्मों में तक़सीम किया था । एक का नाम रेखता' जो ग़ज़ल की ज़बान थी और दूसरे का नाम 'हिंदी' बताया था जो आम बोलचाल की जमान थी। 'हिंदी' का लफ़्ज़ छिन गया। अब जो कुछ हम चाहते हैं वह यह है कि श्राप इसके पुराने नाम 'हिंदी' की जगह इसके दूसरे पुराने नाम हिंदुस्तानी' को खाज दीजिये, वाह अपनी ग़ज़लों का नाम रेखता की जगह उर्दू ही रखिए। इसमें कोई हर्ज नहीं, मगर अपनी इल्मी, तालीमी वतनी और सियासी तहरीकात में श्राम तौर से इसको हिंदुस्तानी के सही