पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१०६

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राष्ट्रभाषा पर विचार गये थे और भारत के विषय में जो कुछ लिखते थे प्रमाण की दृष्टि से देखा जाता था। उनके कथन पर आपको विचार करना ही होगा और यह भी बताना ही होगा कि हिंदुस्तानी टाटबाहर क्यों हैं ? डाक्टर गिलक्रिस्ट की कृपा से हिंदुस्तानी किस प्रकार हिंदी से उर्दू हो गई यह तो प्रगट हो गया पर अभी यह देखने में नहीं आया कि फोर्ट विलियम की हिंदी, हिंदुस्तानी वा नागरी क्या हुई, अथवा स्वयं डाक्टर गिलक्रिस्ट की फूहड़ वा 'हिंदुई कहाँ गई। कहने की बात नहीं कि डाक्टर गिलक्रिस्ट ने जिसे 'वलार' फूहड़ वा गवाँरी कहकर टाल दिया था वही देश की सच्ची भाषा हिंदुई वा हिंदी थी। उसी को भाषाविदों ने प्रकृति का मूल भाषा माना और उसी के महत्त्व वा प्रतिष्ठा के लिये हिंदी का आंदोलन भी खड़ा हुआ। परंतु उस समय तक डाक्टर गिलक्रिस्ट की नीति इतना फल ला चुकी थी कि उसके सामने हिंदी का सफल होना असंभव था। फिर भी इस आंदोलन का प्रभाव इतना तो पड़ा ही कि उच्च हिंदी को भी हिंदुस्तानी का अंग मान लिया गया। प्रसंगवश यहाँ इतना और जान लेना चाहिए कि जहाँ 'हिंदुस्तानी' शब्द उर्दू का पर्याय हो गया वहीं सदा से 'हिंदुस्तानी' शब्द का वाचक रहा है। आज या कल से नहीं, प्रत्युत बहुत पहले से यह 'हिंदुस्तानी' शब्द 'हिंदी' के पर्याय के रूप में चला आ रहा है और बहुत से पुराने अंगरेजों के लेखों में पाया भी जाता है। परिणाम यह हुआ कि भाषाविदों ने भ्रमवश हिंदुस्तानी को तो देश-भाषा मान लिया और हिंदुस्थानी वा हिंदी को उसकी शैली का पद दिया। सरकार अथवा गिलक्रिस्ट की कृपा से कैसी उलटी गंगा वही! वात यह थी कि मुगल-शासन की अधीनता में काम करने के कारण अंगरेज बहादुरों को फारसी ही अत्यंत