पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/१०३

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हिंदुस्तानी का आग्रह क्यों सारांश यह है कि वैसे तो सभी भाषाओं की भाँति हिंदुस्तानी की भी कई शैलियाँ हैं किंतु उनमें से तीन मुख्य हैं जिनमें से पहली तो दरबार और ऊँची उर्दू शाइरी की शैली है और दूसरी अच्छे मुंशियों और हल्की उर्दू शायरी की। रही तीसरी, सो उसके विषयमें उक्त डाक्टर साहब का कहना है कि वह फूहड़ों और सर. कार की उन कानून की पोथियों की भाषा है जिनकी रचना उस समय फोर्ट विलियम में हिंदी भाषा व 'नागरी अक्षर' में की गई थी। इनमें तो स्वयं डाक्टर गिलक्रिस्ट ने जिस शैली को सदा प्रोत्साहन दिया वह मध्य की मुंशी शैली अर्थात् स्पष्टतः हल्की उर्दू थी। यहाँ पर ध्यान देने की बात है कि फोर्ट-विलियम-सरकार ने जिस जनवाणी और जिस जनलिपि का उपयोग अपने आईन के अनुवादों में किया था उसी लोक-वाणी और उसी लोक-लिपि की उपेक्षा उसी के फोर्ट-विलियम कालेज में उसी के डाक्टर गिलक्रिस्ट के कर-कमलों के द्वारा हुई और हिंदुस्तानी हिंदुस्थानी वा हिंदी न रहकर पक्की हिंदोस्तानी वा उर्दू बन गई। उसकी लिपि भी नागरी से फारसी हो गई। हाँ, इस प्रसंग में कभी भी भूलना न होगा कि फोर्ट-विलियम की सरकार के कागदों में कहीं भी 'हिंदुस्तानी भाषा' और 'फारसी अक्षर' का विधान नहीं है। अर्थात् डाक्टर गिलक्रिस्ट की हिंदुस्तानी कहीं भी नहीं है। वहाँ तो फारसी भाषा और फारसी अक्षर एवं हिंदी (हिंदुस्तानी एवं नागरी भी) भाषा और नागरी ( कहीं-कहीं हिंदी भी) अक्षर का ही विधान है तात्पर्य यह कि वहाँ की जन-वाणी और यहाँ की जन-लिपि की उपेक्षा इसी फोर्ट-विलियम कालेज की उपज है जिसके उत्पादक स्वयं श्रीमान् डाक्टर गिलक्रिस्ट साहब ही हैं।