पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८५

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एम -एम -एमाणमोझराम -राम -राम -राम -राम-राम -पम -एमा । ८२ . अहिं

. .. : ॐ भक्ति मैंने मुनि को सुनाई, ये वही मेरे इष्टदेव रामचन्द्रजी हैं, जिनकी सेवा के ) ज्ञानी मुनि सदा किया करते हैं। छंद-मुनिधीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं। ॐ कहि नेति निगम' पुरान आगम जासु कीरति गावहीं । सोइरामु व्यापक ब्रह्म सुवन निकाय पति माया धनी । राम अवतरेड अपनेभगत हित निजतंत्रनित रघुकुल मनी । ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरन्तर शुद्धचित्त से जिनका ध्यान करते है हैं; वेद, पुराण और शास्त्र ‘नेति-नेति' कहकर जिनकी कीर्ति गाते हैं; उन्हीं राम) ऊँ सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्माण्डों के स्वामी, माया-पति, नित्य परम स्वतंत्र, ब्रह्मरूप के राम रघुकुल में मणि-स्वरूप भगवान् रामचन्द्रजी ने अपने भक्तों के हित के लिये, राम) ॐ अपनी इच्छा से अवतार लिया है। ई लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिव बार बहु ।। 813 बोले विहँसि महेसु हरिमाया बलु जानि जिय ॥५१॥ यद्यपि शिवजी ने अनेक बार कहा, तो भी सतीजी के हृदय में उनका राम उपदेश नहीं बैठा। तब शिवजी मन में भगवान् की माया का बल जानकर हो मुस्कराते हुये बोले जौं तुम्हरे मन अति संदेहू ॐ तौ किन जाइ परीछा लेहू तब लगि वैठ अहौं वट छाँहीं ॐ जब लगि तुम्ह ऐहहु मोहिं पाहीं | जो तुम्हारे मन में बहुत सन्देह है, तो तुम जाकर परीक्षा क्यों नहीं लेतीं ; * जब तक तुम मेरे पास लौट न आओ तबतक मैं इसी बड़ की छाँह में बैठा हूँ। छै जैसे जाइ मोह भ्रम भारी ॐ करेहु सो जतन विवेकु बिचारी राम) चलीं - सती सिव आयसु पाई $ करइ विचारु करउँ का भाई जिस प्रकार तुम्हारा अज्ञान से उत्पन्न यह भारी भ्रम दूर हो, तुम बही ए) यत्न सोच-समझ कर करना । शिवजी की आज्ञा पाकर सती ( रामचन्द्रजी की राम । परीक्षा लेने के लिये ), चलीं और मन में सोचने लगीं-भाई ! क्या करू १ । ॐ १. वेद । २. शास्त्र । ३. हूँ। ४, पास ।। . राम -राम -एम) 4-एम -ए -04-0म)*राम -राम -राम- राम -राम