पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८२

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छछ - ७९ हैं * अवतार लिया था। वे अविनाशी भगवान पिता के वचन से राजपाट छोड़कर, तपस्वी वेश में दण्डक-वन में विचर रहे थे। ॐ हृदयँ बिचारत जात हर केहि बिधि दरसनु होइ । | 1 रूप अवलरेउप्र रायें जान सब कोइ ४८} (९) शिवजी अपने मन में विचारते जाते थे कि रामचन्द्रजी के दर्शन मुझे किस प्रकार हों । प्रभु ने गुप्त रूप से अवतार लिया है, मेरे जाने से सब कोई हैं उन्हें जान जायेंगे। ers सं उर अति छोटु सती न जानइ भएछु सोई।। tected तुलसी दसन चुसन लोचन लालची ॥४८॥२) महादेवजी के मन में बड़ी खलबली मच गई थी, परन्तु सतीजी इस भेद को न जानती थीं । तुलसीदास कहते हैं कि शङ्करजी राम के समीप जाने से ॐ मन में डरते थे; पर दर्शन के लोभ से उनके नेत्र ललचा रहे थे। रावन मरल मनुज कर जाँचा ॐ प्रभु विधि वचन कीन्ह वह साँचा में जौ नहिं जाउँ हइ पछतावा ॐ करत विचारु न बनत बनाया * रावण ने ( ब्रह्मा से ) अपनी मृत्यु मनुष्य के हाथ से माँगी थी । ब्रह्मा की बात को प्रभु सत्य किया चाहते हैं। जो नहीं जाता हूँ, तो जी में पछतावा । न बना रहेगा। इस तरह शिवजी विचार करते थे, पर कोई बात उनके मन में राम) ठीक बैठती न थी। एहि विधि भये सोच बस ईसा # तेही समय जाइ दससीसा ए) लीन्ह लीच मारीचाहिं सैगा ॐ भयउ तुरत सोइ झपट कुरंगा | इस प्रकार महादेवजी चिन्ता के वश में हुए। उसी समय रावण ने जाकर नीच मारीच को साथ लिया और वह तुरन्त कपट-मृग बन गया। * केंरि छले मूढ़ हरी बैदेही $ प्रभु प्रभाउ तस विदित न तेही * मृग बधि बंधु सहित हरि अाये ॐ श्रमु देखि नयन जल छाये - उस मूर्ख ने छल करके सीताजी को हर लिया । वह रामचन्द्रजी की वास्तविक महिंमा को नहीं जानता था । मृग को मारकर रामचन्द्रजी भाई-सहित हैं। से आश्रम में आये। वहाँ सीताजी को न देखकर उनकी आँखों में आँसू भर आये। ॐ .. १. जाने से । २. शिवजी ।