पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७८

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पूजहिं माधव पद जलजाता ॐ परसि अख्यवटु हरषहिं गाता है राम 
भरद्वाज आश्रम अति पावन ॐ परम रम्य मुनिवर मन भावन

वेणी-माधवजी के चरण-कमलों की पूजा करते हैं और अक्षयवट को छूकर उनके शरीर पुलकित होते हैं । भरद्वाज मुनि का आश्रम बहुत ही पवित्र परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनियों के मन को भाने वाला है। ।

तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा । जाहिँ जे मज्जन तीरथराजा 
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा ॐ कहहिं परसपर हरि गुन गाहा

प्रयाग में जो स्नान करने जाते हैं, भरद्वाजजी के आश्रम में उन ऋषिमुनियों का जमाव होता है। प्रातःकाल सब उत्साह-सहित स्नान करते हैं और फिर आपस में भगवान् के गुणों की कथायें कहते हैं। |

ब्रह्म निरूपन धर्म विधि बरनहिं तत्त्व विभाग ।।
कहहिं भगति भगवंत कै संजुल ग्यान विराग ।४४। ॐ 

ब्रह्म का विचार, धर्म का विधान और तत्वों के विभाग का वर्णन करते हैं और ज्ञान और बैराग्य से संयुक्त भगवद्-भक्ति की चर्चा करते हैं।

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं ॐ पुनि सव निज निज आस्रम जाहीं 
प्रति संवत अति होइ अनंदा ॐ मकर मज्जि' गवनहिं मुनिवृन्दा

इस प्रकार वे माघ के महीने भर स्नान करते हैं और फिर अपने-अपने आश्रमों को चले जाते हैं। इसी तरह वहाँ हर साल बहुत ही आनन्द होता है। राम मकरभर स्नान करके मुनि-गण चले जाते हैं।

एक बार भरि मकर नहाए । सब मुनीस आस्रमन्ह सिधाए 
जागबलिक मुनि परम बिबेकी भरद्वाज राखे पद टेकी

एक बार माघभर स्नान करके सब मुनीश्वर अपने-अपने आश्रमों को लोट गये; परन्तु परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि के चरण पकड़कर भरद्वाजजी ने उन्हें रोक लिया।

सादर चरन सरोज पखारे ॐ अति पुनीत असन बैठारे 
करि पूजा मुनि सुजसु बखानी । बोले अति पुनीत मृदु वानी ।। 

१. कमल । २. नहाकर । ३. कमल ।