पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७३

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छ ७० उच्चरितमानस ॐ की बुद्धि निर्मल हो गई। उसके हृदय में आनन्द और उत्साह भर गया और प्रेम है। राम और आनन्द का प्रवाह उमड़ आया। .:. . ॐ चली सुभग कविता सरिता सो ३ राम बिमल जस जल भरिता सो कैं रामः सरजू नाम सुमंगल मूला ॐ लोक बेद मत मंजुल ठूला' एम) । नदी पुनीत सुमानस नंदिनि ॐ कलि मल त्रिन तरु मूल निकंदिनि । . .. उससे सुन्दर कवितारूपी नदी बह निकली, जिसमें रामचन्द्रजी का विमल । यशरूपी जल भरा हुआ है। उस ( कवितारूपी नदी ) का नाम सरयू है, जो । सारे सुन्दर मंगलों की जड़ है। लोकमत और वेदमत ही उसके दो सुन्दर किनारे हैं। यह मानसरोवर की कन्या सरयू नदी बड़ी ही पवित्र और कलि के । पापरूपी तृणों और वृक्षों को निर्मूल करने वाली है। . . . : म) श्रोता त्रिविध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल । ) संत सभा अनुपम अवध सकल सुमंगल भूल ।३९॥ कुँ राम). ' तीनों प्रकार के श्रोताओं का समाज ही सरयू नदी के दोनों किनारों पर (राम) में बसे हुए पुर, गाँव और नगर हैं। सब मंगलों की जड़ संतों की सभा ही अनुपम उम्। अयोध्या है। रामभगति : सुरसरितहि जाई 8 मिली सुकीरति सरजु सुहाई है सानुज राम समरं जसु घावन ॐ मिलेउ महानदु सोन सुहावन | सुन्दर कीर्तिरूपीं सुहावनी सरयू राम-भक्तिरूपी गंगा में जा मिली है। के छोटे भाई लक्ष्मण-सहित श्रीरामजी के पवित्र युद्ध का यशरूपी सहानद सोन । है उसमें आ मिला हैं। . ..। की जुग विच भगति देवधुनि' धारा ॐ सोहति सहित सुविरति बिचारा । राम) त्रिविध ताप त्रासकं तिमुहानी ॐ राम सरूप सिंधु समुहानी दोनों के बीच में भक्तिरूपी गङ्गा की धारा ज्ञान और वैराग्य सहित एम. सुहावनी लगती है। इस प्रकार तीनों तापों को भयभीत करने वाली तीन मुंह । ॐ वाली नदी रामस्वरूप सागर से मिलने के लिये जा रही है। राम मानस मूल मिली सुरसरिही $ सुनत सुजन मन पावन करिही विच बिच कथा विचित्र विभाग के जनु, सरि तीर तीर बनु वागा कै.. १. तट । २. गंगाजी ।