पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७

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81 के छात्र अन्य है धारण किये हुए हैं । इन्हींने, अरे इन्होंने ही, हमें जीता है ? पर कामदेव तुलसीदास पर अट्टहास न कर सका। वे दुखियों की सेवा 1 में निमग्न थे; इससे कामदेव के लिए उन्होंने अपने अन्तर्जगत का द्वार ही के ) - नहीं खुलने दिया । जिस स्त्री-की अजेयता का गान इन शब्दों में किया गयाहै:- । जनमजितमयीच्छता विजेतु' निशितदशाधेशर धनुचिमुच्य 1 आतिभसतयोता स्मरेण ५ क्मसियष्टिरिहांगनाभिभाना ॥ ) - : 'मनुष्य पर विजय पाने के लिए कामदेव ने अपने तेज़ बाण छोड़े, ऐसे ड पर मनुष्य जीता नहीं गया। तब उसने झटपट नारीरूपी तलवार उठा ली । ) उसी स्त्रीबल को, कामदेव की उस तलवार को, तुलसीदास ने एस । के निष्फल कर दिया। अश्वघोष ने सच ही कहा है। तथा ही चीः पुरुषा न ते मता जयन्ति ये साश्वरथद्विपाव नरन् । यथा मता वीरतरा मनीषिणो जयन्ति लोलानि डिन्द्रियानि ये ॥ 'जो घोड़े, हाथी और रथ से युक्त मनुष्यों को जीतते हैं, वे सच्चे बीर से नहीं हैं । सच्चे बीर तो वे विद्वान हैं तो छहों चंचल इन्द्रियों को जीतते हैं । " तो ' तुलसीदास को हम ऐसे ही बीरों में अग्रगण्य पाते हैं। बाह्य जगत में राम ले रावण पर विजय प्राप्त करते हैं तो तुलसीदास अपने अन्तर्जगत् के शत्रुओं ऐो के मोह, मद, मत्सर आदि से जीवन-भर युद्ध करते रह कर कीर्ति पाते हैं। हूँ। तुलसीदास ने मानव-समाज के समस्त मानसिक और प्राकृतिक एल. के व्यापारी का अनुभव किया था । उनके मुख से एक विशाल जनसमुदाय की हैं। छे सरस्वती बोली थी । वे एक कवि थे, भक्ति उनका गौण विषय था । वे कवि हो से होकर ही समाज में आये और शून्त समय तक कधि ही रहे भी यों तो ये ये कधि की प्रतिभा बहुमुखी होती है और वह प्रत्येक विषय की मर्मज्ञता प्रकट होने भी करता है, पर उसकी एक खास प्रकृति अलग होती है, जिसमें वह विशेष से एं रुचि रखता है । कोई 'गाररस का रसिक होता , तो कोई करुण का; कोई एं। हास्यरस का प्रेमी होता है तो कोई वीर का जिसकी रुचि जिस रस में लें। अधिक होती है, वह उस पर अधिक अनुराग रखता है। तुलसीदास की रुचि एंजे भक्ति की ओर अधिक थी, और उन्होंने अध्ययन और अनुभव से भी उसमें ऐसे अन्तरंगता बढ़ा ली थी, उनका लक्ष्य भी यही था कि भक्ति को जीवन का प्रमो है केन्द्र बनाकर उसकी ओर लोगों को आकर्षित करेंजिससे उनके मन की दिौर के प्रो$ एस$ एस एन एम-ए७-८ एम$