पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४४

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स्व - छ। ॐ मन्त्र समूह (सिद्ध साबर-तन्त्र) की रचना की है, जिन के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ है, न जप ही होता है, तथापि शिव के प्रताप से उनका प्रभाव ॐ प्रत्यक्ष है। राम

सो उमेस मोहिं पर अनुकूला ॐ करउँ कथा सुद मंगल मूला ॥
सुमिरि सिवा सिव पाइ पसाऊ । बरनउँ रामचरित चित चाऊ ॥ 

वे उमापति मुझ पर प्रसन्न हैं। अतएव मैं आनन्द और मंगल की जड़ राम-कथा रचता हूँ। मैं शिव और पार्वती दोनों को स्मरण करके और उनका प्रसाद पाकर बड़े चाव से रामचरित का वर्णन करता हूँ।

भनिति मोरि सिव कृपा बिभाती' । ससि समाज मिलि मनहुँ सुराती ॐ 
जे एहि कथाहिं सनेह समेता । कहिहहिं सुनिहहिं समुझि सचेता ॥राम्रो 
होइहहिं राम चरन अनुरागी ॐ कलि मल रहित सुमंगल भागी ॥

मेरी कविता शिवजी की कृपा से ऐसी सुहावनी लगेगी, जैसे तारागण सहित चन्द्रमा के साथ रात्रि की शोभा होती है । जो इस कथा को प्रेम से कहेंगे, सुनेंगे और मन लगा कर समझेंगे, वे रामचन्द्रजी के चरणों के भक्त हो जायँगे और कलियुग के दोषों से मुक्त होकर कल्याण के भागी होंगे ।।

सपनेहुँ साँचेहु मोहि पर जौ हर गौरि पसाउ।
तो फुर' होउ जो कहेउँ सब भाषाभनिति प्रसाउ॥१५॥

यदि मुझ पर शिवजी और पार्वती जी की प्रसन्नता स्वप्न में भी सचमुच हुई हो, तो मैंने अपनी भाषा की कविता का जो प्रभाव बताया है, वह सब सच हो । ॐ

बंदउँ अवधपुरी अति पावनि ॐ सरजू सरि कलि कलुप नसावनि ॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी । ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी ।|

मैं अति पवित्र अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करने वाली सरयू नदी की वन्दना करता हूँ। फिर उस पुरी के स्त्री-पुरुषों को प्रणाम करता हूँ, राम) जिन पर प्रभु रामचन्द्रजी की कृपा थोड़ी नहीं है।

राम सिय निंदक अघ ओघ नसाये ॐ लोक विसोक वनाई वसाये ॥ 
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची ॐ कीरति जासु सकल जग माँची ॐ 

१. शोभा पाती हैं । २. सत्य । ३. समूह । ४. पूर्व दिशा ।