पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४२

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आपकी कृपा से मुझे वह ( अच्छी कविता ) भी सुलभ हो जायगी । रेशम की रामको सिलाई टाट पर भी सुहावनी ही लगेगी । [दृष्टान्त अलङ्कार]

सरल कवित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान ।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनिहिं वखान ॥१४(१)॥  

उसी सरल कविता और निर्मल कीर्ति का विद्वान् लोग आदर करते हैं, जिसे सुनकर शत्रु भी स्वाभाविक बैर को छोड़कर प्रशंसा करने लगे।

तुम सो न होइ बिनु बिमल अति सोहि अतिबल अतिथोर ।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर ।१४(२)॥ 

ऐसी कविता बिना शुद्ध बुद्धि के नहीं हो सकती और मुझे बुद्धि का बल बहुत ही थोड़ा है। इसलिये मैं बार-बार विनती करता हूँ कि हे कवियो ! अपि लोग मुझ पर कृपा करें, जिससे मैं हरि का यश वर्णन कर सकूं।

कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल । 
बालविनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल ।१४(३)।

रामचरित-रूपी मान-सरोवर के सुन्दर हंस हे कवि और पंडितगण आप मुझ बालक की विनय सुनकर और राम-कथा कहने की सुरुचि देखकर मुझ पर कृपा करें।

बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ। 
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ।१४(४)।। 

मैं उन बाल्मीकि मुनि के चरण-कमलों की बन्दना करता हैं, जिन्होंने रामायण की रचना की है। जो खर (राक्षस) सहित होने पर भी कोमल और सुन्दर हैं और दूषण (राक्षस) सहित होने पर भी निर्दोष हैं। [विरोधाभास अलङ्कार]

बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस । राम 
जिन्हहिं न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ।१४(५)। 

चारों वेदों की बन्दना करता हूँ, जो संसार-समुद्र के पार होने के लिये

१. हंस । २. कमल । ३. जहाज ।