पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४१२

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@ , अयोध्य-शUई ® ४११ । मैं रोज रात को बुरे स्वप्न देखती हूँ। मोह-वश तुझसे नहीं कहती।। सखी ! क्या करू, मेरा तो सीधा स्वभाव है । कौन दायाँ ( अनुकूल ) है, कौन ॐ बायाँ ( प्रतिकूल ), मैं कुछ नहीं जानती । एम) - अपनें चलत न आजु लगि अनसल काहुक कीन्ह। । केहिं अघ एकहि बार भोहि दैअँ दुसह दुखुदीन्ह २० अपनी भरसक आजतक मैंने कभी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा। फिर न जाने किस पाप से मुझे दैव ने एक साथ ही यह दुःसह दुःख दिया । ॐ नैहर जनम भरव वरु जाई ६ जियत न करवि सत्रति सेवकाई रामे) अरि वस दैउ जियावत जाही ॐ सरनु नीक तेहि जीवन चाही' हैं भले ही मैं नैहर में जाकर वहीं जीवन बिता देंगी, पर जीते जी सौत की है। रामो चाकरी न करूंगी । दैव जिसको शत्रु के वश में रखकर जिलाता है, उसके लिये तो जीने की अपेक्षा मरना ही अच्छा है। राम दीन वचन कह बहु बिधि रानी ॐ सुनि कुबरी तियमाया ठानी अस कस कहउ मानि मन ऊना ॐ सुखु सोहागु तुम्हें कहुँ दिन दूना | रानी ने बहुत तरह से दीन वचन कहे। सुनकर कुबरी ने त्रिया-चरित्र * फैलाया । कुबरी बोली-रानी ! तुम मन को छोटा करके ऐसा क्यों कह रही के हो ? तुम्हारी सुख और सुहाग दिन-दिन दूना होगा। जेहि राउर अति अनभल ताका ॐ सोइ पाइहि एहु फलु परिपाका जब तें कुमत सुना मैं स्वामिनि के भूख न चासर नींद न जामिनि राम जिसने तुम्हारा बुरा चाहा है वहीं अन्त में इसका फल पायेगी । हे ॐ स्वामिनि ! मैंने जब से यह खोटी सलाह सुनी है, तब से मुझे न तो दिन में । रामो भूख लगती है और न रात में नींद ही आती है। से पूछेउँ गुनिन्ह रेख तिन्ह खाँची ॐ भरत भुआल होहिं एह साँजी राम्रो भामिनि करहु त कहीं उपाऊ ॐ हैं तुम्हारी सेवा वस राऊ मैंने ज्योतिषियों से पूछा तो उन्होंने रेखा खींचकर ( गणित करके ) कहा है कि भरत राजा होंगे, यह सत्य है । हे भामिनि ! तुम करो, तो उपाय तो में का * दें; राजा तुम्हारी सेवा के वश में हैं ही। १. अपेक्षा । २. छोटा, ग्लानि ।।