पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ॐ ४०६ : २५च - न . हैं कौसल्या समः ‘सब महतारी ॐ रामहं सहज सुभायँ पियारी के रामो मो पर करहिं सनेहु विसेषी ॐ मैं करि प्रीति परीछा देखी सुरु है राम को सहज स्वभाव ही से सब मातायें कौसल्या के समान ही प्यारी हैं। मुझ पर तो वे विशेष रूप से प्रेम करते हैं। मैंने उनकी प्रीति की परीक्षा करके देख लिया है। जौं विधि जनमु देइ करि छोहू' की होहुँ राम सिय पूत पतोहू । प्रान ते अधिक रामु प्रिय मोरे तिन्ह के तिलक छोभु कस तोरें | जो विधाता कृपा कर मुझे फिर जन्म दें, तो रोम मेरे पुत्र और सीता बहू के हौं । राम् मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। उनके तिलक से तुझे दुःख ॐ क्यों हुआ ? एम - भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहरि कपट दुराउ।। हरष समय बिसमउ कसि कारन मोहि सुनाउ।१५।। | तुझको भरत की सौगन्ध है, तू छल-कपट छोड़कर सच-सच कह। तू हर्ष के समय में बिषाद कर रही है, इसका कारण मुझे सुना। . : हैं। एकहिं बार आस सब पूजी ॐ अब कछु कहब जीभ कर दूजी राम) फोरै जोगु कपारु अभागा ॐ भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा राम्रो | ( मन्थरा ने कहा-) एक ही बार कहने से सारी आशायें पूरी हो गईं। अब क्या दूसरी जीभ लगाकर कुछ कहूँगी। मेरा अभागा कपाल तो फोड़ने ही के योग्य है। हित की बात कहने पर भी आपको दुःख होता है। कहहिं झूठ फुरि बात बनाई ॐ ते प्रिय तुम्हहिं करुइ मैं माई में हमहुँ कहब अब ठकुर सोहाती ॐ नाहिं त मौन रहब दिनु राती के जो झूठी सच्ची बातें बनाकर कहते हैं, हे माता ! वे ही तुम्हें प्रिय हैं और होम, मैं तो कड़वी लगती हैं। अब मैं भी ठकुर-सोहाती ( मुँह-देखी ) कहा करूंगी, ॐ नहीं तो दिन-रात चुप रहा करूगी । (राम) करि कुरूप विधि परबस कीन्हा ॐ बवा सो लुनि लहिअ जो दीन्हा । कौउ नृप होउ महि का हानी ॐ चेरि छाँड़ि अब होब कि रानी है १. कृपा । २. आपको । ३. कड़वी । ४. मुहदेखी ।।