पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४००

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  • ® - अध्या - छई :

३६.६ | (आनन्द ) सुशोभित होता है। [ रूविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार ] प्रथम जाइ जिन्ह वचन सुनाए ॐ भूषन वसन भूरि तिन्ह पाए । - प्रेम पुलकि तन मन अनुराग के मङ्गल कलस सजन सव लागी (राम) : जिन्होंने रनिवास में जाकर यह समाचार सबसे पहले सुनाये, उन्होंने उनको । बहुत-से भूषण और वस्त्र पाये। रानियों को शरीर प्रेम से पुलकित हो उठा, उनका मन प्रेम-मग्न हो गया, वे सब मंगल-कलश सजाने लगीं। चौकईं चारु सुमित्रा पूरी ॐ मनिमय विविध भाँति अति रूरी आनँद मगन राम महतारी के दिये दान वहु विप्र हँकारी | सुमित्रा ने अनेकों तरह की मनोहर मणियों की अत्यंत सुन्दर चौके पूरी! रामचन्द्र की माता कौशल्या आनन्द में मग्न हैं, उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर | बहुत दान दिये ।। में पूजी ग्राम देवि सुर नागी ॐ कहेउ बहोरि देन वलि भागा राम जेहि विधि होइ राम कल्यानू के देहु दया करि सो वरदानू एमा | गावहिं मंगल कोकिल वयनी ॐ विधुवदनी मृग सावक नयनी राम्रो फिर गाँव के देवी-देवताओं और नागों की पूजा की और ( फिर कार्य सिद्ध राम् हो जाने पर ) बलि भेंट चढ़ाने की मनौती मानी । (उनसे प्रार्थना की कि) जिस । प्रकार से रामचन्द्रजी का कल्याण हो, बही वर दया करके दीजिये । कोकिल | की-सी रसीली वाणी वाली, चन्द्रमा के समान मुंह वाली और मृग के बच्चे के-से नेत्र बाली स्त्रियाँ मंगल गीत गाने लगीं। | राम राज अभिषेक सुनि हियँ हर नर नारि ।। ॐ = लगे सुसङ्गल सजन सब विधि अनुकूल बिचारि ८ रामचन्द्र का राज्याभिषेक सुनकर सभी स्त्री-पुरुष हृदय में बहुत प्रसन्न हुए। | और विधि को अनुकूल समझकर सुन्दर मंगल के साज सजाने लगे। तव नरनाहँ बसिष्ठु बोलाए ॐ राम धाम सिख देन पठाये गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा के द्वार आइ पद नाय माथा | ॐ तब राजा ने वशिष्ठजी को बुलाया और शिक्षा ( समयोचित उपदेश ) देने । राम के लिए उन्हें रामचन्द्रजी के महल में भेजा । गुरु का आगमन सुनते ही राम चन्द्रजी ने दरवाजे पर आकर उनके चरणों में मस्तक नवाया ।