पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८९

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ॐ ३८६ . अद्धि ब्वा . * के समय लाल कमल । घर-घर में स्त्रियाँ जागरण कर रही हैं और एक दूसरी राम) को मंगलमयी गालियाँ दे रही हैं। पुरी बिराजति राजति रजनी ॐ रानीं कहहिं विलोकह सजनी हैं सुन सुन्दर बधुन्ह सासु लेइ सोईं ॐ फेनिकन्ह जनु सिर मनि उर गोईं। | रानी कहती हैं—हे सजनी ! देखो, रात कैसी शोभा दे रही है; उसमें अयोध्यापुरी बहुत ही सुहावनी लगती है। सुन्दर बहुओं को लेकर सासुयें सोई हैं। मानो सर्पो ने अपने सिर की मणियों को हृदय में छिपा लिया है। प्रात पुनीत काल : प्रभु जागे ॐ अरुनचूड़' बर बोलन लागे राम वन्दि मागधन्हि गुनगन गाये ॐ पुरजन द्वार जोहारन आये होमो सवेरे पवित्र ब्राह्म-मुहूर्त में प्रभु जागे । मुर्गे सुन्दर बोलने लगे । बन्दीजन ॐ राम) और मागध गुणविली गाने लगे तथा नगर के लोग फाटक पर, प्रणाम राम ॐ करने को आये। राम बन्दि विप्न सुर गुर पितु माता ॐ पाइ असीस मुदित सब भ्राता । जननिन्ह सादर वृदन निहारे ॐ भूपति सङ्ग द्वार पगु धारे ब्राह्मणों, देवताओं, गुरु, पिता और माताओं को प्रणाम कर आशीर्वाद पाकर सब भाई प्रसन्न हुए। माताओं ने आदर से उनके मुख देखे । फिर वे राजा * के साथ दरवाजे पर पधारे। नाम , कीन्हि सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ। ने है 38 प्रातक्रिया करि तात पहिं आये चारिउभाई॥३५८ * . स्वभाव ही से पवित्र चारों भाइयों ने सब शौच से निवृत्त होकर पवित्र नदी । ( सरयू ) में स्नान किया और प्रातः क्रिया करके वे पिता के पास आये । । भूप बिलोकि लिये उर लाई छ बैठे हरषि रंजायसु पाई। देखि रामु सब सभा जुड़ानी ॐ लोचन लाभ अवधि अनुमानी । राजा ने उन्हें देखते ही हृदय से लगा लिया। वे पिता की आज्ञा पाकर राम प्रसन्न होकर बैठ गये। रामचन्द्रजी को देखकर और नेत्रों के लाभ की बस यहीं । । सीमा है, ऐसा अनुमान कर सारी सभा शीतल हो गई। ॐ १. मुर्गा ।