पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

- { छाल ३७५ ॐ । अनेक प्रकार के बाजे बज रहे थे। सुमित्रा ने प्रसन्नता से मङ्गल के साज । सजाये । हल्दी, दूब, दही, पत्ते, फूल, पान और सुपारी आदि मङ्गल की मूल ॐ वस्तुएँ, * अच्छत अंकुर रोचन लाजा ॐ मंजुल मंजरि तुलसि विराजा । छुहे' पुरट घट सहज सुहाये $ मदन सकुन जनु नीड़ बनाये राम) अक्षत ( चावल ), अँखुए, गोरोचन, लावा और तुलसी की सुन्दर मंजरियाँ है सुशोभित हैं। नाना रंगों से चित्रित किये हुए सहज सुहावने सुवर्ण के कलश ऐसे मालूम होते थे, मानो कामदेवरूपी पक्षी ने घोंसले बनाये हों । । । संगुन सुगन्ध न जाइ बखानी ॐ मंगल सकल सजहिं सब रानी । रची आरती बहुत विधाना ॐ मुदित करहिं कल मंगल गाना * सगुन की सुगन्धित वस्तुएँ बखानी नहीं जा सकतीं। सव रानियाँ मङ्गल साज सज रही हैं। बहुत तरह की आरती रचकर प्रसन्नता से वे सुन्दर मङ्गल* गान कर रही हैं। ॐ ॐ कनकथार भरि संगलन्हि कमल कन्हि लिये सातु ।। - चलीं मुदित परिछन करन पुलकपल्लवित गातु।३४६। एम | सुवर्ण के थालों को माङ्गलिक वस्तुओं से भरकर अपने कमल के समान राम्) हाथों में लिये हुये मातायें आनंदित होकर परछन करने चलीं। उनका शरीर पुलकित हो रहा है। से धूप धूम नभु मेचक भयऊ ६ सावन घन घमंड जनु ठयऊ सुरतरु सुमन माल सुर बरपहिं # मनहुँ बलाक अवलि मनु करहिं धूप के धुएँ से आकाश काला हो गया है। मानो सावन के मेघ उमड़कर छा गये हों । देवता कल्पवृक्ष के फूलों की मालायें बरसा रहे हैं; वह मानो बगुल की पाँत है जो मन को अपनी ओर खींच रही है। मंजुल मलिमय बन्दनिवारे ॐ मनहुँ पाकरिषु चाप सँवारे प्रगटहिं दुरहिं अटन्हि पर भामिनि $ चारु चपल जनु दमकहिं दामिनि सुन्दर मणियों के बन्दनवार ऐसे मालूम होते हैं, सानो इन्द्रधनुष सजाये हों। अटारियों पर सुन्दर और चपल स्त्रियाँ प्रकट होती और छिप जाती हैं, मानो बिजलियाँ चमक रही हों । । १. चित्रित । २. सोना । ३. पक्षी । ४. घोंसला । ५. इन्द्र ।।