पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६३

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है ३६० . ८ जना ॐ ... श्रेष्ठ कुँवरों को बधुओं सहित, देखकर उनके मन में जितना आनन्द है, * वह किस प्रकार कहा जा सकता है ? प्रातःक्रिया करके वे गुरु वशिष्ठ जी के ॐ पास गये । उनके मन में अतिशय आनंद और प्रेम भरा है। म) करि प्रनासु पूजा कर जोरीं बोले गिरा, अमिइँ जनु बोरी है तुम्हरी कृपा सुनहु सुनिराजा ॐ भयउँ आजु मैं पूरन काजा | हाथ जोड़कर, प्रणाम और पूजन करके और फिर मानो अमृत में डुबोई हुई हो, ऐसी वाणी बोले- हे मुनिराज ! सुनिये, आपकी कृपा से आज मैं सफल । मनोरथ हो गया । अब सब बिग्न बोलाइ गोसाईं ॐ देहु धेनु सब भाँति :- बनाई । सुनि गुर करि महिपाल बड़ाई के पुनि पठये मुनि बृन्द बोलाई राम) : अब हे स्वामिन् ! सब ब्राह्मणों को बुलाकर उनको सब तरह से सजी हुई गायें दीजिये । यह सुनकर गुरुजी ने राजा की प्रशंसा करके फिर मुनि-गणों को बुलवा भेजा। - बामदेव अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि।। ॐ आये मानबर लिकर तब कौसिकादि तपसालि ३३० ॐ वामदेव, नारद, वाल्मीकि, जाबालि और विश्वामित्र आदि तपस्वी मुनी। श्वरों के समूह के समूह आये । । दंड प्रनाम सवहि नृप कीन्हे ॐ पूजि सप्रेम बरासन, दीन्हे म चारि लच्छ बर धेनु मँगाई ॐ काम सुरभि सम सील सुहाई ॐ . राजा ने सब को दंड-प्रणाम किया और प्रेम से पूजन करके उन्हें उत्तम एम) आसन दिये । चार लाख श्रेष्ठ गायें जो कामधेनु के समान अच्छे स्वभाव वाली है और सुन्दर थीं, राजा ने मँगवाई। .. .. . . . | सु सब विधि सकल अलंकृत कीन्हीं ॐ भुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं करत विनय बहु विधि नरनाहू लहउँ आजु जग जीवन लाडू ॐ उन सब को सबै प्रकार से विभूषित करके राजा ने प्रसन्न होकर ब्राह्मणों के । को गायें दीं। राजा बहुत तरह से विनती कर रहे हैं कि आज ही मैंने संसार में राम) ॐ जीने का लाभ पाया। |