पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५०

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  1. . बाल
  • ३४७ । ॐ मधुपर्क मङ्गल द्रव्य जो जेहि समय मुनि सन सहुँ चहैं।

भरे कनक कोपर कलस सो तव लिएहिं परिचारकर हैं। । कुलाचार करके गुरुजी प्रसन्न होकर, गणेशजी, गौरी और ब्राह्मणों की हो ॐ पूजा करा रहे हैं। देवता प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते हैं, आशीर्वाद देते हैं और होम) अत्यन्त सुख पा रहे हैं। मुनि मन में मधुपर्क आदि जो-जो मंगल-द्रव्य चाहते * हैं, उनको सेवकगण उसी समय सोने की परात और कलशों में भरकर लिये 0) तैयार रहते हैं। ॐ कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर किए। । एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासलु दिए। तुम जिय राम अवलोकन परसपर प्रेमु काहु न लखि परे । एम मन बुद्धि बर वानी अगोचर फ्राट कवि कैसे करे । सूर्यदेव प्रेम-सहित अपने कुल की रीतियाँ बता देते हैं; मुनि ने उन होम सब को आदर और प्रीति-सहित करा दिया । इस प्रकार देवताओं की पूजा ॐ करा के उन्होंने सीताजी को सुन्दर सिंहासन दिया। सीता राम का आपस में एक है। () दूसरे को देखना तथा उनका परस्पर का प्रेम किसी को देख नहीं पड़ रहा है। इस ॐ भला, जो बात मन, बुद्धि और वाणी से भी परे है, उसे कवि कैसे कहे ? सुमो के होम समय तलु घरि अनलु अति सुख आहुति लेहि। उनी बिग्र बेष धरि वेद सब कहि बिबाह विधिदेहि।३२३॥ हवन के समय अग्निदेव शरीर धारण करके बड़े ही सुख से स्वयं आहुति रामा ले लेते हैं। और सारे वेद ब्राह्मण का वेष धारण करके विवाह की विधियाँ एमा बताये देते हैं। राम् जनक पाट महिपी जग जानी ॐ सीय मातु किमि जाइ वखानी राम सुजसु सुकृतु सुखु सुन्दरताई ॐ सब समेटि विधि रची वनाई है। | जनकजी की जगविख्यात पटरानी और सीता की माता का बखान तो । म) कैसे हो सकता है ? सुयश, पुण्य, सुख और सुन्दरता सबको बटोरकर ब्रह्मा ने हैंउनकी रचना की है।