पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४८

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बीत्नसमय देखकर वशिष्ठजी ने शतानन्दजी को आदरपूर्वक बुलाया । दुलाहट राम) सुनकर आदर-सहित शतानन्दजी आये । वशिष्ठजी ने कहा- राजकुमारी को ॐ शीघ्र ले आइये । मुनि की आज्ञा पाकर शतानन्दजी प्रसन्न होकर चले। रानी ' सुनि : उपरोहित वानी के प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी विप्रवधू । कुलवृद्ध वोलाई ॐ करि कुलरीति सुमंगल गाई बुद्धिमती रानी पुरोहित की बाणी सुनकर सखिय-समेत प्रमुदित हुई। उन्होंने ब्राह्मणों की स्त्रियों और कुल की वृद्धा स्त्रियों को बुलाया । उन्होंने कुल के रीति-रस्म पूरे करके सुन्दर मङ्गल-गीत गाये ।। । नारि वेष जे सुर वर वामा ॐ सकल सुभायँ सुन्दरी स्यामा ॐ तिन्हहिं देखि सुख पावहिं नारीं ॐ विनु पहिचानि प्रान ते प्यारी राम , सुराङ्गनायें, जो मनुष्य की स्त्रियों के वेष में हैं, सभी स्वभाव ही से ॐ सुन्दरी और श्यामा ( घोड़श बर्षीया ) हैं । उनको देखकर रनिवास की स्त्रियाँ । को बहुत ही सुख पाती हैं और बिना पहचान ही के वे प्राणों से भी प्यारी हो राम) राम बार बार सनमानहिं रानी ॐ उमा २मा सारद सम जानी राम सीय सँवारि समाज वनाई को मुदित मंडपहिं चलीं लिवाई । रानी बार-बार उनका सम्मान उन्हें पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के समान जानकर करती हैं। रनिवास की स्त्रियाँ और सखियाँ सीता का शृङ्गार करके, मंडली बनाकर, आनन्दित होकर, उन्हें मंडप की ओर लिवा ले चलीं। म छंद-चलि ल्याइ सीतहि सखी सादर सजि सुसंगल भासिनीं। तो नवसप्त साजें सुन्दरी सब संत कुंजर गासिनी ।। हैं कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोझिल लाजहीं है संजीर' नूपुर क्वलित झन ताल गत वर वाजहीं ॥ | सुन्दर मङ्गल का साज सजकर स्त्रियाँ आदर-सहित सीता को लिवा चलीं । ए सभी सोलह शृङ्गार से सुसज्जित मतवाले हाथी की सी चाल वाली हैं। उनके । मनोहर गान को सुनकर मुनि लोग ध्यान छोड़ देते हैं और कामदेव के कोकिल १. पाञ्चव ।