पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३९

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। ३३६ मचाना इब्न । ॐ देखने चले । जनकपुर को देखकर देवता इतने अनुरक्त हो गये कि उन्हें अपनेम) अपने लोक बहुत तुच्छ लगने लगे । चितवाहं चकित बिचित्र बिताना ) रचना सकल अलौकिक नाना नगर नारि नर रूप निधाना ॐ सुघर सुधरस सुसील सुजाना | अद्भुत मंडप को तथा नाना प्रकार की अलौकिक रचनाओं को वे चकित होकर देख रहे हैं। नगर के स्त्री-पुरुष रूप के भंडार, सुधर और धर्मात्मा, सुशील और विचारवान हैं। ॐ तिन्हहिं देखि सव सुर सुरदारी ॐ भए नखत जनु विधु उँजियारी है राम) विधिहि भयेउ अचरजु विसेषी ॐ निज करनी कछु कतहुँ न देखी । उन्हें देखकर सब देवता और उनकी स्त्रियाँ चन्द्रमा के प्रकाश में नक्षत्र की तरह फीके हो गये । ब्रह्मा को विशेष आश्चर्य हुआ क्योकि वहाँ उन्होंने अपनी कोई रचना तो कहीं देखी ही नहीं । सिव समुझाए देव सब जनि अचरज्जु भुलाह। हृदयविचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिहु ॥३१४॥ । तब शिवजी ने सब देवताओं को समझाया कि तुम लोग आश्चर्य में मत राम भूलो और धीरज धरकर हृदय में विचार करो कि यह सीताराम का विवाह है। हैं जिन्ह र नाम लेत जग माहीं के सकल अमंगल मूल नसाहीं । के करतल होहिं पदारथ चारी ॐ तेइ सिय रामु कहेउ कामारी म) जिनका नाम लेते ही संसार में सब अमङ्गलों को मूल नष्ट हो जाता है। ॐ और चारों पदार्थ ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) मुट्ठी में आ जाते हैं, वही सीता * म) और राम हैं । काम के शत्रु शिवजी ने ऐसा कहा। - ॐ एहि विधि संभु सुरन्ह समुझावा ॐ पुनि आगे बर वसह चलावा हैं राम देवन्ह देखे दसरथु जाता ॐ महामोद मन पुलकित गाता | इस प्रकार शिवजी ने देवताओं को समझाया और फिर अपने श्रेष्ठ बैल * । नंदीश्वर को आगे हाँक दिया । देवताओं ने देखा कि मन में बड़े ही प्रसन्न और सुरू * पुलकित शरीर से दशरथ जी जा रहे हैं। १. चैल ।।