पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३०

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।। - एछ .. ३२७ । हुँ असन संयन बर बसन सुहाए $ पावहिं सब निज निज मन भाए । रामु नित नूतन सुख लखि अनुकूले के सकल बरातिन्ह मंदिर भूले । बरात के सब लोग अपने-अपने मन की पसन्द के अनुसार उत्तम भोजन, बिस्तर और सुन्दर बस्त्र पाते हैं। अपनी रुचि के अनुकूल नित्य नये सुखों को देखकर सब बरातियों को अपने-अपने घर भूल गये ।। आवत जानि बरत र सुनि गहगहे निसान् ।। राम ने सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान३०४ मी बड़े ज़ोर से बजते हुये नगाड़ों की आवाज़ सुनकर, श्रेष्ठ बरात को आती राम्रो हुई जानकर अगवानी करने वाले हाथी, रथ, पैदल और घोड़े सजाकर बरात लेने चले । णमो कनक केलस भरि कोपर' थारा ॐ भाजन ललित अनेक प्रकारा । भरे सुधा सम सब पकवाने कै भाँति भाँति नहिं जाहिं बचाने सोने के कलश, परात, थाल आदि अनेक प्रकार के सुन्दर बर्तनों में जिन । ॐ में अमृत के समान सब पकवान भरे हुये हैं, जो विविध प्रकार के हैं, जिनका वर्णन नहीं हो सकता, ॐ फल अनेक बर बस्तु सुहाई ॐ हरषि भेंट हित भूप पठाई ॐ भूषन बसन महा मनि नाना ॐ खग मृग हय गय बहुविधि जाना है। राम) उत्तम फल तथा और भी अनेकों सुन्दर चीजें राजा ने हर्षित होकर भेंट ॐ के लिये भेजीं। गहने, वस्त्र, तरह-तरह के जवाहिरात, पक्षी, पशु, घोड़े, हाथी राम) और कई तरह की सवारियाँ- . कुँ मंगल सगुन सुगंध सुहाये ॐ बहुत भाँति महिपाल पठाये राम दधि चिउरा उपहार अपारा ॐ भरि भरि काँवरि चले कहारा राम सुहावने मंगल द्रव्य, सगुन की चीजें और बहुत प्रकार के सुगन्धित पदार्थ राम राजा ने भेजे । दही, चिउड़ा और अगणित उपहार की चीजें बहँगियों में भर| भरकर कहोर ले चले ।। * अगवानन्ह जब दीखि बराता ॐ उर आनंदु पुलक भर गाता देखि बनाव सहित अगवानी की मुदित बरातिन्ह हुने निसाना १. पुरात । २. सवारी ।