पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२७

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ॐ गावहिं गीत मनोहर नाना ॐ अति आनंदु, न जाइ बखाना है राम, तव सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी ॐ जोते रवि हय निंदक बाजी । . वे नाना प्रकार के मनोहर गीत गा रही हैं। उनके अत्यन्त आनन्द का है राम) बखांन नहीं हो सकता। तब सुमन्त्र ने दो रथ सजाकर, उनमें सूर्य के घोड़ों का राम्। भी तिरस्कार करने वाले घोड़े जोते ।. . दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने ॐ नहिं . सारद पाह जाहिं बखाने राज समाजु एक रथ साजा ॐ दूसर तेज पुञ्ज अति भ्राजा | दोनों सुन्दर र को वे राजा दशरथ के पास ले आये । ( वे इतने सुन्दर थे कि ) उनका बखान सरस्वती से भी नहीं हो सकता। एक रथ राजसी ठाठ से । सजाया गया और दूसरा बहुत ही दिव्य और अत्यन्त शोभायमान था। न) - तेहि रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु । आपु चढे यंदन सुमिरि हर शुर गौरि गनेसु॥३०१॥ ॐ उस सुन्दर रथ पर वशिष्ठजी को आनन्दपूर्वक चढ़ाकर फिर राजा दशरथ स्वयं शिव, गुरु, पार्वती और गणेशजी को स्मरण करके दूसरे रथं पर सवार हुये । । ॐ सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसे ॐ सुर गुर संग पुरंदर जैसे ॐ करि कुल रीति वेद विधि राऊ ॐ देखि सवहि सब भाँति बनाऊ वशिष्ठ के साथ राजा कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे देवताओं के गुरु रामा | वृहस्पति के साथ इन्द्र हों । वेद की विधि से और कुल की रीति . के अनुसार कैं राम कार्य करके तथा सब प्रकार से सब को सब प्रकार से सजे हुये देखकर, राम) सुमिरि रामु गुर आयसु पाई ॐ चले : महीपति संख बजाई हूँ एम हरचे विबुध' बिलोकि बराता ॐ बरषहिं सुमन सुमंगल दाता g , राम को स्मरण करके और गुरु की आज्ञा पाकर, राजा दशरथ शंख बजा कर चले । देवता बरात देखकर हर्षित हुये और सुन्दर मङ्गलदायक फूलों की । वर्षा करने लगे। 'भयेउ. कोलाहल हय गय गाजे ॐ व्योम बरात बाजने बाजे सुर नर नारि सुमंगल गाई ॐ सरस राग : बाजहिं सहनाई । | १. देवता ।।