पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२०

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- ॐ सभा समेत राउ अनुरागे ॐ दूतन्ह देन निछावरि लागे राम कहि अनीति तै में दहिं काना ॐ धरनु विचारि सबहिं सुखं माना। सभा-सहित राजा प्रेम में मग्न हो गये और दूत को निछावर देने लगे । । राम्चे दूत “यह उचित नहीं ऐसा कहकर हाथों से कान में देने लगे। उनके धर्म का प्रमो विचार करके ( उनका धर्मयुक्त व्यवहार देखकर ) सभी ने सुख माना । है । तब उठि झुए बसिछ कहें दीन्हि पत्रिका जाइ।। रामो कथा सुनाई शुरहि सब सादर ठूत बोलाइ॥२९३।। हुन | तब राजा ने उठकर वशिष्ठ को जाकर चिट्टी दी । और आदर-सहित दूत एम् को बुलाकर उन्होंने सारी कथा गुरुजी को कह सुनाई। से सुनि बोले गुर अति सुखु पाई ॐ पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई हैं जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं ॐ जद्यपि ताहि कासना नाहीं रामो सुनकर और बहुत सुख पाकर गुरु बोले--पुण्यात्मा पुरुषों के लिये पृथ्वी को ॐ सुख से छाई हुई है। जैसे नदी समुद्र के पास जाती है, यद्यपि समुद्र को नदी रामो की कामना नहीं होती । तिमि सुख संपति चिनहिं वोलाये धरमसील पहिं जाहिं सुभाये तुम्ह गुर विश्र धेनु सुर सेबी $ तसि पुनीत कौसल्या देवी । | वैसे ही सुख और सम्पत्ति बिना बुलाये ही, स्वभावतः, धर्मात्मा पुरुष के पास जाते हैं। तुम गुरु, ब्राह्मण, गौ और देवता की सेवा करने वाले हो, वैसी ही पवित्र कौशल्या देवी भी हैं। ॐ सुकृती तुम्ह समान जग माहीं ॐ भयउ न है औउ होनेउ नाहीं एम) तुम्ह ते अधिक पुन्य वड़ का 8 राजन राय सरिस सुत जाकें पानी है तुम्हारे समान पुण्यात्सा संसार में न कोई हुआ, न है और न होने वाला है। ए) है। हे राजन् ! तुमसे अधिक और किसका पुण्य होगा, जिसके राम-सरीखे । ॐ पुत्र हैं ? । बीर बिनीत धरम व्रत धारी छ गुन सागर बर वाल* चारी । में तुम्हें कहुँ सर्व काल कल्याना ॐ सज वरात वजाउ निसाना के तुम्हारे चारों बालक वीर, विनम्र, धर्म के व्रत को धारण करने वाले और