पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१९

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. शिवजी के धनुष को कोई भी हटा न सका । सब बली योद्धा हार गये । तीनों लोकों में प्रसिद्ध जो अभिमानी वीर थे, सबकी शक्ति शिवजी के धनुष ने। | ॐ तोड़ दी, या बता दी। सकाइ उठाइ सरासुर मेरू ॐ सोंउ हिय हारि गयउ करि फेरू ) जेइ कौतुक सिव सैलु उठावा. * सोउ तेहि सभाँ पराभव पावा राम बाणासुर, जो सुमेरु को भी उठा सकता था, वह भी हृदय में हारकर परि- राम | क्रमा करके चला गया । और जिसने खेलवाड़ की तरह कैलाश को उठा लिया । था, वह रावण भी उस सभा में पराजय को प्राप्त हुआ। - तहाँ राम रघुबंसमांने सुनिश्च महा महिपाल । । जेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाले ॥२९२ (राम). हे महाराज ! सुनिये, वहाँ रघुवंश-मणि- रामचन्द्रजी ने बिना प्रयास ही। के शिव के धनुष को वैसे ही तोड़ डाला, जैसे हाथी कमल की डंडी को तोड़ ए) डालता है। । सुनि सरोष भृगुनायकु आये ॐ बहुत भाँति तिन्ह आँखि देखाये देखि राम बलु निज धनु दीन्हा ॐ करि बहु विनय गचनु बन कीन्हा धनुष टूटने का समाचार पाकर क्रोध में भरे परशुराम आये और उन्होंने बहुत प्रकार से आँखें दिखलाई । अन्त में उन्होंने भी राम को बल देखकर अपना धनुष दे दिया और बहुत प्रकार से विनती करके बन को गमन किया। राजन राम अतुल वल जैसे $ तेज निधान लषन पुनि तैसें । कंपहिं भूप बिलौकत जाकें $ जिमि गज हरि किसोर के ताके नाम हे राजन् ! जैसे रामजी अतुलित बली हैं, वैसे ही तेजस्वी लक्ष्मणजी भी है गुरु हैं। उनके देखने मात्र से राजा लोग काँप उठते थे, जैसे हाथी सिंह के बच्चे के | ताकने से काँप उठते हैं। । देव देखि तव बालक दोऊ ॐ अब न आँखि तर आवत कोऊ * दूत बचन रचना प्रिय लागी ॐ प्रेम प्रताप बीर रस पागी हे देव ! आपके दोनों बालकों को देखने के बाद अब आँखों के नीचे कोई ॐ आता ही नहीं; अर्थात् दृष्टि में कोई चढ़ता ही नहीं। प्रेम, प्रताप और वीर-रस सम्) * में पगी हुई दूतों की वचन-रचना राजा को बहुत ही प्रिय लगी ।... |