पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३११

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३०८ | छापा राम ने कहा-हे मुनि ! विचार करके बोलिये । आपका क्रोध बहुत बड़ा है। और मेरी भूल बहुत छोटी है। पुराना धनुष था छूते ही टूट गया; भला मैं किस लिये अभिमान करू ? १ ज हम निदरहिं बिग्र बदि सत्य सुनहु भृगुनाथ।। ० तो अस ये जग सुभट जेहि भय बस नावाहिं माथ॥ । हे भृगुवंश के स्वामी ! यह सच समझिये कि यदि हम ब्राह्मण कहकर निरादर करें, तो सत्य जानिये कि संसार में ऐसा कौन योद्धा है, जिसे हम डर के मारे मस्तक नवायें ? देव दनुज भूपति भट लाना 8 समबल अधिक होउ बलवाना | जौं रन हमहिं पृचारे कोऊ ॐ लहिं सुखेन कालु किन होऊ । देवता, राक्षस और राजा या और भी अनेक योद्धा लोग, वे चाहे बराबर बल ॐ वाले हों, चाहे अधिक बलवान् , कोई भी हमें युद्ध में ललकारे, तो वे काल ही राम क्यों न हों, हम उनसे सुख से लड़ते हैं। छत्रिय तनु धरि समर साना ॐ कुल लंकु तेहि पॉवर जाना कृहउँ सुभाउ न कुलहि असंसी ॐ कालहु डरहिं न रन रघुबंसी क्षत्रिय का शरीर धरकर जो युद्ध में डर गया, उसे कुल का कलंक और अधम जानना चाहिये । मैं स्वभाव ही से कहता हूँ, कुल की प्रशंसा करके नहीं, कि रघुवंशी लोग रण में काल से भी नहीं डरते । । बिश्वंस के असि प्रभुताई ॐ अभय होइ जो तुम्हहिं डेराई है। राम) सुनि मृदु बचन शूढ़ रघुपति के ॐ उबरे पटल परसुधर, मति' के एम) ब्राह्मण-वैश की ऐसी प्रभुता है कि जो आपसे डरता है, वह सबसे निर्भय कुँ राम) हो जाता है। रामचन्द्र के कोमल और रहस्य-पूर्ण वचन सुनकर परशुराम की राम) ॐ बुद्धि के परदे खुल गये । | राम राम रमापति कर धनु लेहू के खेंचहु मिटइ मोर संदेहू ॐ देत चापु आपुहि चढ़ि गयऊ ॐ परसुराम मन बिसमय भयऊ. एम् परशुराम ने कहा-हे राम ! विष्णु का यह धनुष हाथ में लो। इसे चढ़ा छू दो, जिससे मेरा संदेह मिट जाय। जैसे ही परशुराम ने धनुष दिया, वैसे ही १. परदा । २. बुद्धि ।