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- ७ २८३ कहँ कुम्भज' कहें सिंधु अपारा ॐ सोखेउ सुजसु सकल संसारा रवि मंडल देखत लधु लागा ॐ उदय तासु त्रिभुवन तम भागा कहाँ घड़े से उत्पन्न होने वाले छोटे-से मुनि अगस्त्य और कहाँ अपार समुद्र; किन्तु अगस्त्य ने उसे सोख लिया, जिसका सुयश सारे संसार में फैला हुआ है। सूर्यमंडल देखने में तो छोटा लगता है, पर उसके उदय होते ही तीनों लोकों का अन्धकार भाग जाता है। - संन्न फ्रम लघु जात्रु बस विधि हरि हर सुर सर्व । महासत्त गजराज कहूँ बस कर अंकुस खर्व ॥२५६॥ मन्त्र बहुत छोटा होता है, पर उसके वश में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सभी * देवता हैं। इसी तरह बड़े मतवाले हाथी को छोटा-सा अंकुश वश में कर लेता है। । [ प्रमाण अलङ्कार ! काम कुसुम धनु सायक लीन्हे की सकल भुवन अपने बस कीन्हे , हैं देवि तजिअ संसय अस जानी छ भञ्जव धनुषु राम सुनु रानी कामदेव ने फूलों ही का धनुष-बाण लेकर समस्त लोकों को अपने वश में ॐ कर रखा है। हे देवी ! ऐसा जानकर सन्देह छोड़ दीजिये । हे रानी ! सुनिये, राम राम धनुष को अवश्य ही तोड़ेंगे । [भ्रान्त्यापन्हुति अलङ्कार ] सखी बचन सुनि भइ परतीती ॐ मिटा विषाद बढ़ी अति प्रीती एम् तब महिं विलोकि बैदेही के समय हृदय विनयति जेहि तेही सखी की बात सुनकर रानी को विश्वास हो गया, खेद मिट गया और * राम में अत्यन्त प्रीति बढ़ गई। उसे समय राम को देखकर सीता भयभीत हृदय । * से जिस-तिस ( देवता ) से विनती कर रही हैं। ॐ मनहीं मान मनाव अकुलानी होहु प्रसन्न महेस भवानी राम करहु सुफल पनि सेवकाई ॐ कृरि हितु हरहु चाप गरुग्राई व्याकुल होकर सीता मन ही मन ( देवताओं को ) मना रही हैं--हे हैं। शिव-पार्वती ! मुझ पर प्रसन्न होइये और मैंने जो आपकी सेवा की है, उसका एमा सुन्दर फल दीजिये । मुझ पर स्नेह करके धनुष के भारीपन को हर लीजिये। १. अगस्त्य मुनि । २. छोटा।