पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२६४

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पी. बाल-VE २६१ चन्द्रमा बादलों के पर्दे को हटाकर निकले हों। सोभा सी- सुभग दोउ वीरा नील पीत जलजाम सरीरा मोरपंख सिर सोहत नीके गुच्छे बीच विच कुसुम कली के दोनों सुन्दर भाई शोभा की सीमा हैं। उनके शरीर नीले और पीले कमल की आभा वाले हैं। सिर पर सुन्दर मोर-पंख सुशोभित है। उनके बीच-बीच में फूलों की कलियों के गुच्छे लगे हैं। म भाल तिलक स्रमबिंदु सुहाये 8 स्रवन सुभग भूपन छवि छाये विकट भृकुटि कव घूघरवारे नव सरोज लोचन रतनारे रामो माथे पर तिलक और पसीने की बूंदें सुशोभित हैं। कानों में सुन्दर भूषण मी ॐ शोभा दे रहे हैं। भौहें टेढ़ी और बाल धुंघराले हैं। नेत्र नवीन कमल के समान राम रतनारे हैं। as चारु चिबुक नासिका कपोला के हास विलास लेत मनु मोला मुख छवि कहि न जाइ मोहि पाहीं जो विलोकि वह काम लजाही ठुड्डी, नाक और गाल बड़े सुन्दर हैं। और हँसने का माधुर्य तो मानो

  • मन को खरीद ही तो रहा है। (तुलसीदास कहते हैं--) मुझसे उनके मुख की

छवि का वर्णन नहीं हो सकता, जिसे देखकर बहुत-से कामदेव लजा जाते हैं। Ma उर मनि माल कंबु कल ग्रीवा के काम कलम कर भुज वल सीवाँ सुमन समेत वाम कर दोना ॐ साँवर कुँवर सखी सुठि लोना (राम) छाती पर मणियों की माला है । गला शंख की तरह सुन्दर है। कामदेव न के हाथी के बच्चे के सूंड़ की तरह बलवान् भुजायें हैं। बायें हाथ में फूलों-सहित एमा दोना है। हे सखी ! साँवला कुमार तो बहुत ही सलोना है। र केहरि कंटि पट पीत धर सुखमा सील निधान। शाम राम देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा' सखिन्ह अपान २३३ मा सिंह की-सी ( पतली-लचीली) कमर वाले पीताम्बर धारण किये हुये सुन्दरता और शील के घर सूर्यकुल के भूषण रामचन्द्रजी को देखकर सखियों राम 9 को अपनी सुध भूल गई। १. भूल गया। २. अपनापन ।