पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२४५

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ॐ २४२ च्व हिं! ब्न । पुर रम्यता राम जव देखी ॐ हरये अनुज समेत बिसेषी है राम वापी कूप सरित सर नाना ॐ सलिल सुधा सम मनि सोपाना' राम ने जब जनकपुर की शोभा देखी, तब वे छोटे भाई लक्ष्मण-सहित रामसे बहुत प्रसन्न हुये ! अनेक बावड़ी, कुयें, नदी, तालाब बहाँ हैं, जिनका जल ) अमृत के समान है और जिनकी सीढ़ियाँ मणियों की हैं। एम् गुञ्जत मंजु मत्त रस शृङ्गा, ॐ क्रूजत कल वहु बरन बिहंगा । बरन बरन विकसे बनजाता ॐ त्रिविध समीर सदा सुखदाता मकरंद रस में मतवाले सुन्दर भौंरे गूंज रहे हैं । भाँति-भाँति के रंग के सुन्दर पक्षी मधुर शब्द् कर रहे हैं। रंग-रंग के कमल खिले हैं; सदा सुख देने वाला शीतल, मन्द और सुगन्धित पवन बह रहा है। एम सुमन बाटिका बाग बन विपुल विहंग निवास। फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥२१॥ फुलवाड़ी, बोरा और बन जिनमें अनन्त पक्षियों का निवास है, फूलतेफलते हैं और सुन्दर पत्तों से लदे हुये, नगर के चारों ओर शोभा दे रहे हैं। ॐ बनइ न बरनत नगर निकाई ® जहाँ जाइ मन तहइँ लोभाई है चारु बजारु विचित्र अँवारी ॐ मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी नगर की सुन्दरता का वर्णन करते नहीं बनता । मन जहाँ जाता है, वहीं का लुभा जाता है। सुन्दर बाज़ार है, मणियों से बने हुये विचित्र छज्जे हैं, मानो ब्रह्मा ने अपने हाथों से उन्हें सँवारा है । धनिक बनिक वर धनद समाना ॐ वैठे सकल बस्तु लै नाना होम चौहट सुन्दर गली सुहाई ॐ संतत रहहिं सुगंध सिंचाई ) | कुबेर के समान श्रेष्ठ धनी व्यापारी सब प्रकार की अनेक वस्तुयें लेकर कैं बैठे हैं। सुन्दर चौराहे, शोभायमान गलियाँ सदा सुगन्ध से सिंची रहती हैं। राम मङ्गलमय मन्दिर सव केरे ॐ चित्रित जनु रतिनाथ चितेरे । पुर नर नारि सुभग सुचि संता ॐ धरमसील ग्यानी गुनवन्ता सबके घर कल्याणमय हैं। सब चित्रित हैं, मानो कामदेवरूपी चित्रकार ॐ १. सीढ़ी। २. भौंरा । ३. कमल ।।