पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२२९

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। २२६ अनि । ॐ कछुक दिवस बीते एहि भाँती % जात न जानिअ दिन अरु राती । राम नामकरन कर अवसरु जानी ॐ धूप बोलि पठए मुनि ग्यानी । | इस प्रकार कुछ दिन बीत गये । दिन और रात का जाना मालूम न होता है । था। नामकरण का अवसर जानकर राजा ने ज्ञानी वशिष्ठ मुनि को बुला भेजा। करि पूजा भूपति अस भाषा ॐ धरिअ नाम जो मुनि गुनि राखा इन्हके नाम अनेक अनूपा ॐ मैं नृप कहव स्वमति अनुरूप | मुनि का सत्कार करके राजा ने ऐसा कहा—हे 'मुनि ! आपने मन में जो के विचार रखे हों, वह नाम रखिये । सुनि ने कहा—इनके नाम अनेक और के अनुपम हैं। हे राजा ! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहूँगा । जो आनंद सिंधु सुखरासी को सीकर तें त्रैलोक सुपासी सो सुखधाम राम अस नामा अखिल लोक दायक बिस्रामा ये जो आनन्द के समुद्र और सुख की राशि हैं और जिन आनन्द-सिन्धु के एक बूंद से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन सुख के धाम का नाम राम है, जो सम्पूर्ण लोक को शान्ति देने वाले हैं। विस्व भरन पोषन कर जोई ॐ ताकर नाम भरत अस होई जाके सुमिरन ते रिपु नासा के नाम शत्रुहन बेदं प्रकासा कैं , जो संसार का भरण-पोषण करता है, उसका नाम भरत होगा। जिसे | स्मरण करने से शत्रु का नाश होता है, उनका नाम वेदों में प्रसिद्ध ‘शत्रुघ्न है। राम - लच्छन धास राम ईश्य सकल जगत आध्यार । ॐ शुरु बसिछ तेहि ख्यक लछिमन लास उद्धार ।१९७ 'जो शुभ लक्षणों के धाम श्रीराम के प्यारे और सारे जगत् के आधार हैं, के उनका श्रेष्ठ नास गुरु वशिष्ठ ने लक्ष्मण रक्खा ।। धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी ॐ वेद तत्व नृपं तव सुत चारी राम मुनि धन जन सरबंस सिव माना छ बाल केलि रस तेहिं सुख माना | गुरु ने हृदय में विचारकर ये नाम रक्खे और कहा है राजन्! तुम्हारे हैं चारों पुत्र वेद के तत्त्वरूप हैं। जो मुनियों के धन, भक्तों के सर्वस्व और शिवजी * १. बुदे । २. लक्षण ।।