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बाल-काण्ड

मूक होइ बाचाल पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल द्रवौ सकल कलि मल दहन॥२॥

जिनकी कृपा से गूँगा अच्छी तरह से बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जलाने वाले दयालु (भगवान्) मुझ पर प्रसन्न हों ॥२॥

       नील सरोरुह स्याम तरून अरुन बारिज नयन।
      करउ सो मम उर धाम सदा छीर सागर सयन ॥३॥ 

जो नीले कमल के समान श्याम हैं, नये खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं, जो सदा क्षीरसागर में शयन करते हैं,वे विष्णु भगवान मेरे हृदय-मन्दिर में निवास करें ।३।

कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन ।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥४।।

कुन्द के फूल और चन्द्रमा के समान (गौर) शरीरबाले, पार्वतीजी के साथ बिहार करने वालेकरुणा के घरऔर जिनका दीन जनों पर स्नेह है, वे काम-देव को भस्म करनेवाले (शिव) मुझ पर कृपा करें ॥४॥

बंदउँ गुरु पदकंज कृपासिंधु नररूप हरि।
महा मोह तम पुंज जासु बचन रविकर निकर ॥५॥

मैं गुरुजी के कमल ऐसे चरणों की वन्दना करता हूं, जो दया के समुद्र और नररूप में हरि हैं । अज्ञानरूपी महा अन्धकार के समूह के लिये जिनके बचन सूर्य की किरणों के समूह के समान हैं ॥५॥

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥
आमिय मूरि मय चूरन चारू । समन सकल भवरुज परिवारू ॥

मैं गुरुजी महाराज के चरण-कमलों की धूलि की बन्दना करता हूं जिसमें सुरुचि ( प्राप्ति की उकण्ठा ) रूपी सुगंध और प्रेमुरूपी रस है, जो संजीवनी बूटी के सुन्दर चूर्ण के समान संसार की सब व्याधियों के परिवार को नाश करने वाली है।