पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१५

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। २१२ . छतमन ८ कान से भी नहीं सुनाई पड़ता था। जो वेद और पुराण कहते थे, उनको वह सब तरह से भय दिखलाता और देश से निकाल देता था।... | 3 बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं । 63 हिंसा पर अति प्रीति तिन्हके पापहिं कुंवनि मिति॥ राक्षस लोग जो भयानक अत्याचार करते थे, उसका वर्णन नहीं किया जा छै. सकता। जिनकी हिंसा ही पर प्रीति है, उनके पापों का क्या ठिकाना है ? बाढ़े खलं बहु चोर जुआरा ॐ जे लंपट पधन परदारा मानहिं मातु पिता नहिं देवा ॐ साधुन्ह सन करवावहिं . सेवा | दुष्ट, चोर, जुआरी और पराया धन और पराई स्त्री पर मन चलाने वाले * लंपट खूब बढ़ गये। लोग माता, पिता और देवतां को नहीं मानते थे और साधुओं से अपनी सेवा करवाते थे। जिन्हके यह आयरन भवानी ® ते जानहु निसिचर सब प्रानी ॐ अतिसय देखि धरम कै ग्लानी की परम सभीत धरा अकुलानी है रामो . हे पार्वती ! जिनके आचरण ऐसे हैं, उन सब प्राणियों को राक्षस ही राम है समझना । इस प्रकार धर्म के प्रति लोगों की अतिशय ग्लानि देखकर धरती अत्यन्त भयभीत और व्याकुल हो गई। . . । गिरि सरि सिंधु भार नहिं मोही ॐ जस मोहि गरुञ्ज' एक परद्रोही । सकल धरम देखइ बिपरीता ॐ कहि न सकेइ रावन भयभीता है (पृथ्वी सोचने लगी)-पर्वत, नदी और समुद्र का भार मुझे उतना भारी नहीं । । जान पड़ता, जितना भारी मुझे एकं परद्रोही लगता है । सब लोग धर्म के हैं। विरुद्ध काम होता देखते हैं, पर कोई रावण के डर के मारे कुछ बोल नहीं सकता। । धेनुरूप धरि हृदयँ विचारी ॐ गई तहाँ जहँ सुर मुनि झारी हूँ निज संताप सुनाएसि. रोई ॐ काहू तें कछु काज न होई तुम हृदय में सोच-विचारकर, गाय को रूप धरकर, धरती वहाँ गई, जहाँ ए) देवताओं और मुनियों का समूह (छिपा) था। उसने रोकर उनको अपना दुःख । । सुनाया; पर किसी से कुछ काम होता नहीं दिखाई पड़ा। के १. भारी । २. गाय । ३. समूह ।