पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१३

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। २१० , अनिस ८ । के स्त्रियों को गर्भ गिर जाता था। रावण को क्रोध-सहित आता हुआ सुनकर के होम देवताओं ने सुमेरु पर्वत की गुफाओं और खोहों की राह ली। के दिगपालन्ह के लोक सुहाए ॐ सूने सकल दसानंन पाए कुँ राम पुनि पुनि सिंचनाद करि भारी ॐ देह देवतन्ह गारि प्रचारी राम रावण ने दिग्पालों के सारे सुन्दर लोकों को सूना पाया। वह बार-बार ए भारी सिंहनाद करके देवताओं को ललकार-ललकारकर गालियाँ देता था । । । रन मद मत्त फिरइ जग धावा ॐ प्रतिभट खोजत कतहुँ न पावा ) रवि ससि पचन बरुन धनधारी ॐ अगिनि काल जम सब अधिकारी कैं युद्ध के मद में मतवाला होकर वह संसार में दौड़ता फिरा । खोजने पर राम) ॐ भी कहीं उसे बराबर का कोई वीर नहीं मिला। सूर्य, चन्द्रमा, वायु, वरुण, एम) कुबेर, अग्नि, काल और यम आदि सब अंधिकारीहै किन्नर सिद्ध मनुज सुर नागा ॐ हठि सबही के पंथहि लागा हूँ ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी ३ दसमुख बसबर्ती नर नारी । यसु करहिं सकल भयभीता के नवहिं आइ नित चरन बिनीता। | किन्नर, सिद्ध, मनुष्य, देवता और नाग इन सभी के पीछे वह हठ करके पड़ गया । ब्रह्मा की सृष्टि में जहाँ तक स्त्री-पुरुष शरीरधारी थे, वे सभी रावण के अधीन हो गए थे। सब डर के मारे उसकी आज्ञा का पालन करते थे और नित्य आकरे नम्रतापूर्वक उसके चरणों में सिर नवाते थे। भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न स्वतंत्र।। मंडलीक मनिरावन राज करै निज मंत्र॥१८२ (१।। | भुजाओं के बल से विश्व को वश में करके उसने किसी को स्वतंत्र नहीं हो रहने दिया। चक्रवर्तियों को शिरोमणि रावण इच्छानुसार राज्य करने लगा। देव जच्छ गंधर्व नर किन्नर नाग कुमारि । | जीति बरी निज वाहु वल बहु सुन्दर बर नारि ॥१८२(२)। देवता, यक्ष, गन्धर्व, नर, किन्नर और नाग की कन्याओं और अनेक सुन्दरी और श्रेष्ठ स्त्रियों को उसने अपनी भुजाओं के बल से जीतकर विवाह सम) हैं लिया।