पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२१०

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| | - , ळा-क्ला , २०७ | रावण ने कहीं ऐसी ख़बर पाई। सेना लेकर उसने किले को जा घेरा ।। , उस बड़े विकट योद्धा और उसकी बड़ी सेना को देखकर यक्ष अपनी प्राण लेकर भाग गये ।। फिरि सव नगर दसानन देखा ॐ गयेउ सोच सुख भयेउ विरोपा सुन्दर सहज अगम अनुमानी ॐ कीन्हि तहाँ रावन रजधानी । फिर रावण ने सारा नगर देखा। उसकी चिंता दूर हुई और उसे बहुत ही उम सुख हुआ। उस पुर को सुन्दर और सहज में प्राप्त तथा शत्रुओं के लिये अगम अनुमान करके रावण ने उसे अपनी राजधानी बनाया। । जेहि जस जोग वाँटि गृह दीन्हे ॐ सुखी सकल रजनीचर कीन्हे । एक बार कुबेर पर धावा ॐ पुष्पक जान' जीति लेइ अावा ॐ जो जिस योग्य था, उसे वैसा ही घर बाँटकर रावण ने सब राक्षसों को * सुखी किया। एक बार वह कुबेर पर चढ़ दौड़ा और उससे पुष्पक विमान जीत ॐ कर ले आया। ऊँ - कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाई उठाई। - मनहुँ लोलि निज वाहु वल चला बहुत सुख पाई।१७६. राम फिर उसने जाकर खेल ही खेल में एक बार कैलाश पर्वत को उठा लिया । मानो अपनी भुजाओं का बल तौलकर, बहुत सुख पोकर, वह वहाँ से चला आया ।। सुख संपति सुत सेन सहाई ॐ जय प्रताप वल बुद्धि वड़ाई नित नूतन सब बाढ़त जाई जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई में सुख, सम्पत्ति, पुन्न, सेना, सहायक, जय, प्रताप, बल, बुद्धि और बड़ाई है। ये सब उसके नित्य नवीन वैसे ही बढ़ते जाते थे, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढ़ता है। ) अतिबल कुम्भकरन अस भ्राता ॐ जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता करइ पान सोवइ पट मासा ॐ जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा | महाबली कुम्भकर्ण जैसा उसका भाई थी, जिसके जोड़ का योद्धा संसार । में पैदा ही नहीं हुआ। वह शराब पीकर छः महीने सोया करता था। उसने DGDGDGD-EGD****CDR | ' १. यान, विमान । ' । ।