पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०३

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राम -एमा+राम)-**-उस-+-राम -राम- राम -राम -राम -राम राम -) ॐ २०० मुख्य ८. हैं। राजा के उपरोहितहि हरि ले गयेउ बहोरि। ए ! लै राखेसि गिरि खोह महँ माया करि मति भोरि १७१ युवा | फिर वह राजा के पुरोहित को उठा ले गया, और माया के प्रभाव से । उसकी बुद्धि को भ्रम में डालकर उसने उसे पहाड़ की खोह में ले जाकर रक्खा। आपु विरचि उपरोहित रूपा ॐ परेउ जाइ तेहि सेज अनूपा जागेउ नृप अनभएँ बिहान ६ देखि भवन अति अचरजु माना के वह आप पुरोहित का रूप बनाकर उसकी सुन्दर सेज पर जा लेटा। राजा राम ॐ सवेरा होने के पहले ही जागा और अपना घर देखकर उसने बड़ा ही आश्चर्य छै राम माना। . मुनि महिमा मन महुँ अनुमानी उठेउ गवहिं जेहि जान न रानी । । कानन गयेउ बाजि चढ़ि तेही ॐ पुर नर नारि न जानेउ केही | मन में मुनि की महिमा का अनुमान करके वह धीरे से उठा, जिससे * रानी न जाने । वह उसी घोड़े पर चढ़कर बन को चला गया। नगर के किसी पुरुष यो स्त्री ने नहीं जाना ।। ॐ गयें जाम जुग भूपति अवां ॐ घर घर उत्सव बाजु बधावा 0) उपरोहितहि देख जब राजा ॐ चकित बिलोक सुमिरि सोइ काजी से दोपहर बीत जाने पर राजा आया। घर-घर में उत्सव होने लगा और राम) बधावा बजने लगा । जब राजा ने पुरोहित को देखा, तब वह आश्चर्य से देखने मे लगा और उसे वही कार्य स्मरण हो आया। एमी जुग सम नृपहि गये दिन तीनी ॐ कपटी मुनि पद रहि मति लीनी नाम) समय, जानि उपरोहित वा ॐ नृपहि मते सब कहि समुझावा । तीन दिन राजा को युग के समान बीते। उसकी बुद्धि कपटी मुनि के । न चरणों में लगी रही। निश्चित समय जानकर पुरोहित आया और राजा के साथ | की हुई गुप्त सलाह के अनुसार उसने अपने विचार उसे सब समझाकर कह दिये। ॐ नृप हरषेउ पहिचानि गुरु भ्रम बस रहा न चेत। ॐ ५ बरे तुरत सत सहस बर बिप्र कुटुम्ब समेत ।१७२। हैं १. धीरे से, चुपके से ।