पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२०१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

राम) करूगा ।।

  • १९८

चटन . ६ के हे राजन् !::सुनो, मैं उसका वेष धारण करके सब प्रकार से तुम्हारा काम सिद्ध गइ निसि बहुत सयन अब कीजै ॐ मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजै । मैं तपबल तोहि तुइँग समेता ॐ पहुँचैहउँ सोवतहिं निकेता अब हे राजन् ! रात बहुत बीत गई, अब सो जाओ; मुझ से तुम्हारी । मुलाकात आज़ से तीसरे दिन होगी । मैं तप के बल से तुमको घोड़े-संहित सोते ॐ ही में घर पहुँचा दूंगा। एम् का मैं आउब सोइ वेष धरि पहिचानेउ तब मोहि ।। म) - जब एकांत बुलाई सब कथा सुनावउँ तोहि ।१६६। राम) मैं वही ( पुरोहित का ) वेष धरकर आऊँगा। जब मैं एकांत में तुमको रामो बुलाकर सब कथा सुनाऊँ, तब तुम मुझे पहचान लेना। सयन कीन्ह नृप आयसु मानी ॐ आसन जाइ बैठ छल ग्यानी स्रमित भूप निद्रा अति आई छ सो किमि सोच सोच अधिकाई राजा ने आज्ञा मानकर शयन किया और वह कपटी सुनि आसन पर जा बैठा। राजा थका था, उसे खुब नींद आगई। पर वह मुनि कैसे सोता ? उसे तो में चिंता अधिक हो रही थी। कोलकेतु निसिचर तहँ वा जेहि सूकर होइ नृपहिं भुलावा । परम मित्र तापस नृप केरा ॐ जानै सो अति. कपट घनेरा कैं उसी समय वहाँ कालकेतु नाम का राक्षस आया, जिसने सुअरं बनकर कैं (एम) राजा को बहकाया था। वह तपस्वी राजा का बड़ा मित्र था, और छल-प्रपञ्च ख़ब हैं जानता था। राम) तेहिके सत सुत अरु दस भाई के खल अति अजय देव दुखदाई राम प्रथमहिं भूप समर सब मारे $ बिष सन्त सुर देखि दुखारे उसके सौ पुत्र और दस भाई थे, जो बड़े ही दुष्ट, किसी से न जीते जाने। वाले और देवताओं को दुःख देने वाले थे । राजा (प्रतापभानु) ने ब्राह्मणों, संतों का और देवताओं को दुःखी देखकर उन सबको युद्ध में पहले ही मार डाला था। तेहि खेल पाछिल बयरु सँभारा $ तापस नृप मिलि मंत्र विचारा * जेहि रिपुछय सोइ रचेन्हि उपाऊ भावीबस न जान. कुछ राऊ के