पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/२००

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१६७ ॐ जौं नरेस मैं करौं रसोई ॐ तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई रामो अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई ॐ सोइ सोइ तव अायसु अनुसरई। हे राजन् ! मैं यदि रसोई बनाऊँ और तुम उसे परोसो, पर मुझे कोई हो राम्रो जानने न पाये, तो उस अन्न को जो-जो खायगा, वह तुम्हारा आज्ञाकारी बन जायगा ।। पुनि तिन्हके गृह जेंवई जोऊ ॐ तव वस होइ भूप सुलु सोऊ जाइ उपाय रचहु नृप राहू ॐ संबत भरि संकलप करे। । यही नहीं उनके घर भी जो कोई भोजन करेगा, हे राजन् ! सुनो, वह भी तुम्हारे वश में हो जायगा । हे राजन् ! जाकर ऐसा उपाय ठीक करो और एक वर्ष तक ( भोजन कराने का ) संकल्प कर लो ।। सुमो नित नूतन द्विज सहस सत बरेउ सहित परिवार।। ३% मैं तुम्हरे संकलए लगि दिनहिं करबि जेवनार।१६८ नित्य नये एक लाख ब्राह्मणों को परिवारसहित वरण करना। मैं तुम्हारे संकल्प तक प्रति दिन भोजन बना दिया करूंगा। । एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरे ॐ होइहहिं सकल विप्र बस तोरे राम करिहहिं विप्र होम मख सेवा छ तेहि प्रसंग सहजेहिं बस देवा इस प्रकार हे राजन् ! थ डे ही कष्ट से सेब ब्राह्मण तुम्हारे वश में हो पुस जायँगे । ब्राह्मण लोग हवन और यज्ञ से देवताओं की सेवा करेंगे, तव उस प्रसंग से देवगण भी सहज ही में वश में हो जायेंगे। हैं और एक तोहिं कहउँ लखाऊ ॐ मैं एहि वेष न आवउ काऊ म तुम्हरे उपरोहित कहूँ राया ॐ हरि नब मैं करि निज माया हैं मैं एक पहचान और भी तुमको बता देता हूँ कि मैं इस वेष में कभी न राम) आऊँगी । हे राजन् ! मैं तुम्हारे पुरोहित को अपनी माया करके उठा लाऊँगा ।। । तपबल तैहि करि पु ससाना ॐ रखिहउँ इहाँ वरप परवाना " मैं धरि तासु वेषु सुनु राजा ॐ सब विधि तोर सवाँरव काजा तप के बल से उसे अपने समान करके एक वर्ष तक उसे यहाँ रक्खेंगा । १. नया ! २. यज्ञ । ३. पहचान ! ४. परिमाण, तक ।