पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८७

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| म राम)-*-राम -राम -रामाराम -राम- राम -राम)*=*-राम- रामॐ १८४ माँटा नास ८ । स्वबस बिस्व करि बाहुबल निज पुर कीन्ह प्रबेसु। मैं रामा 2 अरथ धरम कामादि सुख सेवइ समयँ नरेसु ॥१५४॥ | उसने अपनी बाहुओं के बल से संसार को अपने वश में करके, अपने * नगर में प्रवेश किया। राजा अर्थ, धर्म और काम आदि सुखों का समयानुसार । सेवन करता था। ॐ भूप प्रतापभानु वल पाई. ॐ कामधेनु मैं भूमि सुहाई के राम) सब दुख बरजित प्रजा सुखारी ॐ धरमसील सुन्दर नर नारी ॐ राजा प्रतापभानु का बल पाकर भूमि सुन्दर कामधेनु हो गई । प्रजा सब राम) दुःखों से रहित और सुखी थी और सब स्त्री-पुरुष सुन्दर और धर्मयुक्त थे। सचिव धरमरुचि हरि पद प्रीती ॐ नृप हित हेतु सिखव नित नीती । राम गुर सुर संत पितर महिदेवा के करइ सदा 'नृप सब के सेवा धर्मरुचि मन्त्री के हृदय में भगवान् के चरणों में बड़ी प्रीति थी। वह । सदा राजा को उनके कल्याण के लिये राजनीति सिखलाता रहता था। राजा । का गुरु, देवता, संत, पितर और ब्राह्मणों की सदा सेवा करता रहता था। । भूप धरम जे बेद बखाने के सकल करइ सादर सुख माने दिन प्रति देइ बिबिध विधि दाना ॐ सुनइ सास्त्र बर वेद पुराना राम) वेद में राजाओं के लिये जो धर्म वर्णित है, राजा सबका पालन आदरहोम पूर्वक और सदा सुख मानकर किया करता था। प्रतिदिन अनेक प्रकार के दान देता था. और उत्तम शास्त्र, वेद और पुराण सुनता था। राम) नाना वापी कूप तड़ागा सुमन बाटिका सुन्दर बागा ॐ विघ्र भवन सुर भवन सुहाए ॐ सब तीरथन्ह विचित्र बनाए राम् उसने बहुत-सी बावड़ियाँ, कुएँ, तालाब, फुलवाड़ियाँ, सुन्दर बाग, ब्राह्मणों के लिये घर, देवताओं के भाँति-भाँति के सुन्दर मन्दिर सब तीर्थों में एम बनवाये थे। | जहँ लगि कहे पुरान सू ति एक एक सब जाग ।। हैं 4 बार सहस्र सहस्र नृप किए सहित अनुराग ॥१५५॥ कैं १. हुई । २. ब्राह्मण । 1 &#