पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१८३

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ॐ १८० चलिन । ॐ स्वामी, सबके हृदय के अन्तर की बात जानने वाले ब्रह्म हैं। राम) अस समुझत मन संसय होई ॐ कहा जो प्रभु प्रवान पुनि सोई हो। जेहि निज भगत नाथ तव अहहीं ॐ जो सुख पावहिं जो गति लहहीं हूँ | ऐसा समझने पर मन में संशय हो रहा है, फिर भी प्रभु ने जो कुछ कहा, राम । वही प्रमाण है। मैं तो यह माँगती हूँ कि हे नाथ ! जो आपके भक्त हैं, वे ॐ जो सुख पाते हैं, जिस गति को प्राप्त होते हैं। सोइ सुखसोई गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु। सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु॥ | हे प्रभु ! वही सुख, वही गति, वही भक्ति, वही आपके चरणों में प्रेम, है वही विवेक, वही रहन-सहन कृपा करके हमें दीजिये ।। राम सुनि मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना ॐ कृपासिंधु बोले मृदु वचना राम * जो कछु रुचि तुम्हरे मन माहीं ॐ मैं सो दीन्ह सव संसय नाहीं रानी की कोमल, गूढ़ और मनोहर वाक्य-रचना सुनकर दया के सागर । । भगवान् मीठे बचन बोले—तुम्हारे मन में जो कुछ इच्छा है, मैंने सब दिया, इसमें संशय नहीं समझना ।। * मातु विवेक अलौकिक . तोरे ॐ कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरे । बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी ॐ अवर एक बिनती प्रभु मोरी . हे माता ! मेरी कृपा से तुम्हारा अलौकिक ज्ञान नष्ट न होगा। तब मनु ने भगवान् के चरणों की वन्दना करके कहा-हे प्रभु ! मेरी एक विनती और है। कैं। राम सुत विषइक तव पद रति होऊ $ मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ (राम) ॐ मनिविनुफनिजिमिजलविनुमीना $ मम जीवन तिमि तुम्हहिं अधीना । लामो आपके चरणों में मेरी वैसी ही प्रीति हो, जैसी पुत्र के लिये पिता की । । होती है, चाहे मुझे कोई बड़ा भारी मूर्ख ही क्यों न कहे। मणि के बिना साँप एम् की और जल के बिना मछली की जो दशा होती है, वैसे ही मेरा जीवन आपके एम् अस बरु मॉगि चरन गहि रहेऊ ॐ एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ अब तुम्ह मम अनुसासन' मानी ॐ बसहु जाइ सुरपति रजधानी । १. साँप । २. आज्ञा, आदेश । के अधीन रहे।...