पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१७६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

छल- ड क़ वरवस राज सुतहिं तव . दीन्हा ॐ नारि समेत गवन वन कीन्हा । तीरथवर नैमिप विख्याता $ अति पुनीत साधक सिधि दाता राम्रो तब मनुजी ने पुत्र को ज़बरदस्ती राज देकर स्वयं स्त्री-सहित वन को । प्रस्थान किया । तीर्थों में श्रेष्ठ नैमिषारण्य प्रसिद्ध है। वह बहुत ही पवित्र और साधक को सिद्धि देने वाला है। वसहिं तहाँ मुनि सिद्ध समाजा ॐ तहँ हिशें हरधि चलेउ भनु राजा । । पन्थ जात सोहहिं सतिधीरा ॐ म्यान भगति जनु धरे सरीरा | वहाँ मुनियों और सिद्ध के समूह बसते हैं । राजा मनु हर्षित होकर वहीं चले । वे धीर-बुद्धि वाले राजा-रानी पथ में जाते हुये ऐसे शोभित हो रहे थे, जैसे ज्ञान और भक्ति शरीर धारण किये जा रहे हों। को पहुँचे जाइ धेनुमति तीरा ॐ हरषि नहाने निरमल नीरा ) ॐ आए मिलन सिद्ध मुनि ग्यानी ॐ धरम धुरन्धर नृप रिषि जानी है। रामो चलते-चलते वे गोमती के किनारे जा पहुँचे । निर्मल जल में उन्होंने हर्षित एमो होकर स्नान किया । उनको धर्म की धुरी धारण करने वाला और राजाओं में है ऋषि के समान जानकर सिद्ध और ज्ञानी मुनि लोग मिलने आये । । जहँ जहँ तीरथ रहे सुहाए $ सुनिन्ह सकल सादर करवाए । कृस सरीर मुनि पट परिधाना ॐ सत समाज नित सुनहिं पुराना जहाँ-जहाँ सुन्दर तीर्थ थे, मुनियों ने आदरपूर्वक सभी तीर्थ राजा-रानी को करा दिये । राजा-रानी का शरीर दुर्बल हो गया था; वे मुनियों के वस्त्र ( वल्कल ) पहने हुये थे और संत-महात्माओं के समाज में रोज़ पुराण सुनते थे। हैं - द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जहिं सहित अनुराग। राम बासुदेव पद परुह' इति मलं अति लाग ॥१४३॥ राम्रो वे फिर द्वादशाक्षर मंत्र (ओं नमो भगवते वासुदेवाय ) का प्रेम-सहित जाप करते थे। भगवान् वासुदेव के चरण-कमलों में राजा-रानी को मन बहुत ही लग गया। करहिं अहोर साक फल कंदा ॐ सुसिरहिं ब्रह्म सच्चिदानंदा पुनि हरि हेतु करन तप लागे ॐ वारि अधार मूल फल त्यागे । हैं . १. कमल ।