पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१७३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। १७० अचटिना है । एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार। ए ! सुर रंजन सज्जन सुखद हरि भंजन भुवि भार।१३९ ॥ । देवताओं को प्रसन्न करने वाले, सज्जनों को सुख देने वाले और पृथ्वी के * भार को नष्ट करने वाले भगवान ने एक कल्प में तो इसी कारण से मनुष्य का कैं। राम अवतार लिया था । है एहि विधि जनम करम हरि केरे' कै सुन्दर सुखद विचित्र घनेरे राम कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं $ चारु चरित - नाना विधि करहीं |... इस प्रकार भगवान् के अनेक सुन्दर, सुख देने वाले और बहुत विचित्र राम जन्म और कर्म हैं। प्रत्येक कल्प में भगवान् अवतार लेते हैं और अनेक प्रकार है की सुन्दर लीलायें करते हैं। है तब तब कथा मुनीसन्ह गाई $ परम पुनीत प्रबंध बनाई एम) विविध प्रसंग अनूप वखाने $ करहिं न सुनि अचरजु सयाने राम) | तब-तब मुनिवरों ने बहुत पवित्र प्रबंध बनाकर कथा का गान किया है। और भाँति-भाँति के अनोखे प्रसंगों का वर्णन किया है, जिसको सुनकर समझॐ दार लोग आश्चर्य नहीं करते। तुम् हरि अनंत हरि कथा अनंता ॐ कहहिं सुनहिं बहु विधि सव संता राम । रामचंद्र के चरित सुहाए के कलप कोटि लगि जाहिं न गाए । |.. क्योंकि भगवान् अनंत हैं। उनकी कथा भी अनन्त है और संन्त लोग उसे बहुत प्रकार से कहते और सुनते भी हैं। रामचन्द्र के सुन्दर चरित्रं करोड़ । कल्पों में भी गाये नहीं जा सकते ।। में यह प्रसंग मैं कहा भवानी ॐ हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी हुँ प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी $ सेवत सुलभ सकल दुख हारी | शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं-हे पार्वती ! मैंने यह प्रसंग यह दिखाने के लिये कहा कि ज्ञानी मुनि भी भगवान् की माया से मोहित हो जाते हैं। भगएम् वान् बड़े ही कौतुकी हैं और शरणागत का हित करने वाले हैं। सेवा करने में सुना बहुत सुलभ और सब दुःखों के हरने वाले हैं। * १. के ।