पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५९

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ॐ १५६ ८ ८ % हैं बोले विहँसि महेस तंब ग्यानी मूढ़ न कोई। एम् डी जेहि जस रघुपति करहिं जब सोतस तेहि छन होइ॥ पुन शिवजी ने तब हँसकर कहा–न कोई ज्ञानी है, न सूर्ख । जब भगवान् रामचन्द्रजी जिसको जैसा करते हैं, वह उसी क्षण वैसा ही हो जाता है। राम्रो कहउँ राम गुन गाथं भरद्वाज सादर सुनहु । tected3 भय भंजन रघुनाथ भजु तुलसी तजि मान मद।।१२४ हे भरद्वाज़ ! मैं रामचन्द्रजी की गुण-गाथा कहता हूँ, तुम आदर से राम) सुनो। तुलसीदासजी कहते हैं-मान और मद को छोड़कर आवागमन का नाश करने वाले रघुनाथजी को भजो। रामो हिमगिरि गुहा एक अति पावनि बह समीप सुरसरी सुहावन आस्रम परम पुनीत सुहावा ॐ देखि देवरिषि मन अति भावा मा हिमालय पर्वत पर एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उसके पास ही सुन्दर गङ्गाजी बहती थीं। उस परम पवित्र और सुन्दर श्रम को नारदमुनि ने देखा और वह म उनके मन को बहुत सुहावना लगा। निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा ॐ भयउ रमापति पद अनुरागा । सुमिरत हरिह साप गति बाधी' ॐ सहज बिमल मन लागि समाधी | पर्वत, नदी और बन-प्रदेश को देखकर नारदजी को भगवान के चरणों में * प्रेम उत्पन्न हुआ। भगवान् को स्मरण करते ही नारदमुनि का वह शाप जिसे दक्ष, के म प्रजापति ने दिया था कि तुम एक स्थान पर नहीं टिक सकोगे, रुक गया और सिम) के स्वभाव ही से निर्मल मन में समाधि लग गयी। राम मुनि गति देखि सुरेस डेराना ॐ कामहिं बोलि कीन्ह सनमाना है संहित सहाय जाहु मम हेतू ॐ चलेउ हरषि हिय जलचर केतू है एम् :: नारदमुनि की गति (समाधि) देखकर देवराज इन्द्र डरा। उसने कामदेव । | को बुलाकर उसका आदर किया और कहा कि) मेरी भलाई के लिये तुम अपने का एम् सहायकों-सहित (समाधि भङ्ग करने को ) जाओ। (इन्द्र की आज्ञा पाते ही) ५ कामदेव भन में प्रसन्न होकर चला । १. बँध गई, रुक गई ।