पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१४७

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करें। १४४ चाटिका मुना हैं। ॐ जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के घर, अमंगल के म) हरने वाले और दशरथ के आँगन में खेलने वाले रामचन्द्रजी मुझ पर कृपा ) करि प्रनाम रामहिं त्रिपुरारी ले हरषि सुधा सम गिरा उचारी मो. हैं धन्य धन्य गिरिराज कुमारी ॐ तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी हैं शिवजी रामचन्द्रजी को प्रणाम करके, हर्षित होकर अमृत के समान रामो ( मधुर ) बाणी बोले-हे गिरिराज-कुमारी पार्वती ! तुम धन्य हो ! धन्य हो ! तुम्हारे समान कोई उपकारी नहीं है। पूछेहु रघुपति कथा प्रसंगा ॐ सकल लोक जग पावनि गंगा तुम्ह रघुबीर वरन अनुरागी ॐ क्लीन्हिहु प्रस्ल जगत हित लागी | जो तुमने रामचन्द्रजी की कथा का प्रसङ्ग पूछा है, जो कथा जगत् में सव लोगों को पवित्र करने के लिये गंगा है। तुमने जगत् के हित के लिये प्रश्न पूछे हैं। तुम रामचन्द्रजी के चरणों में प्रीति रखने वाली हो। राम कृपा ते पारबति सपनेहु तव मन माहिं । एन - सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं।११२॥ एका | हे पार्वती ! मेरे विचार में तो राम की कृपा से स्वप्न में भी तुम्हारे हृदय में शोक, मोह, सन्देह, भ्रम कुछ भी नहीं है। तदपि असंका' कीन्हिहु सोई ॐ कहत सुनत सब कर हित होई जिन हरि कथा सुनी नाहिं काना ® स्रवन रंध्र अहि” भवन समाना हैं ) पर तो भी तुमने आशंका ( संदेह ) इसलिये की है कि इस प्रसंग के ॐ कहने और सुनने से सबका कल्याण होगा। जिन्होंने अपने कानों से भगवान् एम की कथा नहीं सुनी, उनके कानों के छेद साँप के बिल के समान हैं। ॐ नयनन्हि संत दरस नहिं देखा 8 लोचन मोर पंख कर लेखा। एम् ते सिर कटु तुम्वरि सम तूला ॐ जे न नमत हरि गुर पद मूला हैं जिन्होंने अपनी आँखों से सन्तों के दर्शन नहीं किये, उनकी आँखें मोर ये के पंखों पर की आँखों की गिनती में हैं। वे सिर कड़वी तुम्बी के समान हैं, जो हरि और गुरु के चरणों में नहीं झुकते ।। हैं : १. शिंका, संदेह । २. साँप । ३. तुल्य, बराबर ।